पर्याप्त Paryaapt   (पर्याप्त)
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Joined 8 May 2018


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आप आओ भी नहीं लाख इंकार हो मगर

एक दिन तो आना है सब कुछ ठिकाने से

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ख़्यालों में जब मलाल था और

मलाल में ख़्याल जा रहे थे

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डूब रहा हूँ और दुआ भी यहीं है
है कहीं डूबना गर निकलना भी कहीं है।

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यूँ तो आँखों से सब लिखे देता हूँ, मैं
है भी यूँ कि केवल आँखों से ही पढ़े देते हो, तुम

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वक़्त मेरा है ये भी अब कहाँ ख़्याल रहा
हर एक रात बस अगली सुबह का मलाल रहा

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कुछ और ठहर जाते तुमसे
सीखना बहुत कुछ बाकी था

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चाहा उड़ेल दूँ
समन्दर का पानी
अम्बर में

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तसव्वुर में हूँ कि मैं तसव्वुर देखूँ
कहाँ देखूँ किसे देखूँ किस नज़र देखूँ

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कहा करती थी...
तुम्हें कुछ याद नहीं रहता
मैंने उसका ये भ्रम बनाए रक्खा।

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Meanings are changed
with the Time


"हर इक बात के"
"हर एक चीज़ के"

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