परवरिश "कल की"  
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Joined 30 May 2022


Joined 30 May 2022

कल के लिए भागता आज का इंसान, कल की जगह काल के गाल में जल्दी चला जा रहा है।— % &

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"फर्क आधार का"
समंदर में फेंकी गई एक मुट्ठी रेत या एक पत्थर..
और पहाड़ पर गिरा हुआ एक बूंद पानी।
जीवन का अस्तित्व आधार पर ही निर्भर है।
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शुकून की तलाश खुद में ही करनी होगी,
बाकी दुनिया अपने फायदे की तलाश में है।— % &

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अपना आकलन निश्चित करो..
"ब्रह्माण्ड के बृहद परिसीमन की परिकल्पना मानव मस्तिष्क मात्र कर सकता है।"
अतः सोच के सागर में समाहित होकर ब्रह्माण्ड जितना विस्तृत मस्तिष्क लिए इंसान धरित्री पर विचरण कर रहा है।— % &

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समझदार हर कोई है,
पर समझता कोई-कोई है।— % &

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बोझ देने की बजाय ढोने से ज्यादा हल्का हो जाता है, क्योंकि देखने वाला हर कोई मतलबी नहीं होता।— % &

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हमारा वर्तमान हम और भविष्य हमारी आने वाली पीढ़ियों के कंधों पर है। भविष्य संवारना है तो अपनी पीढ़ियों को सवारें।— % &

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