परवरिश कल की (Deepak Yadav)   (D.B.'Muskan')
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Hiii dear all

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शक्ल में अक्ल की तलाश मत कीजिए,
अक्ल में शक्ल ढूंढना फिर कहना वाह वाह..

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हुनर और काबिलियत कम कहां थी किसी में,
कुछ अपनों में तबाह हुई, कुछ अपने से तबाह हुईं।

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मेरी बातें अधिकतर खामोश रातों से इसलिए है कि, दिन के उजाले में हर चेहरे की असलियत पर पर्दा पड़ जाता है।

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मुझे वो गुनाह भी पसंद है, जो किसी उस की भलाई के लिए किया गया हो जो जीवंतता की आखिरी सांस पर हो।

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पसंद थी चूड़ियां तुम्हें भी और मुझे भी..
ले आया मैं शौक से.. तुमने खानकाया ही नहीं,
इश्क की तलब थी, पी लिया तालाब सारा..
घूम ली सारी दुनिया कुछ रास आया ही नहीं।
ये मुकद्दर और तकदीर की बार कितनी बेतुकी है..
सिरहने रखी थी तकिया, तुमने लगाया ही नहीं।
खैर, गैर हो रहे थे हम महफिल में जब तुम्हारे,
हैं कौन तेरे अपने तूने अजमाया ही नहीं..
तूने अजमाया भी नहीं।।

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