परवरिश कल की (Deepak Yadav)   (Dr. Parwarish)
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Joined 8 December 2019


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तमन्नाओं के शहर में
उम्मीदों के दीवारें
अक्सर धोखा देती हैं।।

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फिर अश्क धुल जायेंगे आँखें मेरी,
तेरी राह ताकते कुछ धुंधलाई रोशनी।।

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हुनर और काबिलियत कम कहां थी किसी में,
कुछ अपनों में तबाह हुई, कुछ अपने से तबाह हुईं।

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मेरी बातें अधिकतर खामोश रातों से इसलिए है कि, दिन के उजाले में हर चेहरे की असलियत पर पर्दा पड़ जाता है।

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मुझे वो गुनाह भी पसंद है, जो किसी उस की भलाई के लिए किया गया हो जो जीवंतता की आखिरी सांस पर हो।

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पसंद थी चूड़ियां तुम्हें भी और मुझे भी..
ले आया मैं शौक से.. तुमने खानकाया ही नहीं,
इश्क की तलब थी, पी लिया तालाब सारा..
घूम ली सारी दुनिया कुछ रास आया ही नहीं।
ये मुकद्दर और तकदीर की बार कितनी बेतुकी है..
सिरहने रखी थी तकिया, तुमने लगाया ही नहीं।
खैर, गैर हो रहे थे हम महफिल में जब तुम्हारे,
हैं कौन तेरे अपने तूने अजमाया ही नहीं..
तूने अजमाया भी नहीं।।

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दर्द भी जिंदगी है, पालने का हुनर रख लो ...
बस यही वो जागीर अपनों की है,
को अक्सर मुफ्त मिला करती है।

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दर्द जिंदगी है पालने का शौक है...
सुना है यही वो जागीर है जो अपने दिया करते हैं।

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समंदर छूने की ख्वाहिश में... बनकर नदी बह गए,
मिलने आयेगे हम जिंदगी से.. वे हमसे कह गए।
ख्वाहिशें दम तोड़ देती है दरवाजों पर अक्सर उनके,
जो बाहर निकलने के बजाय, अपने छत पर चढ़ गए।

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हंसकर देख लिया,
खुद को रुलाकर देख लिया..
उसमें खोकर देखा लिया,
खुद को जगाकर देख लिया..
कमबख्त जिंदगी मेरी थी,
औरों ने आजमाकर देख लिया।

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