सफ़र में कैसे कैसे देखिये मंज़र निकल आये
बढ़ाते ही कदम इक राह में पत्थर निकल आये
दिवानों का तेरी सोहबत में मजनूँ हो ही जाना है
पता था मुझको आख़िर इसलिए बचकर निकल आये
हमारे हाथ में लिक्खा कहाँ महबूब से मिलना
शहर से जब कभी उक्ता गये तो घर निकल आये
ज़माना जिस नज़र से तुझको ये रंगीन लगता है
नज़र से देखना उस मुझमें कुछ बेहतर निकल आये
निभाना है अगर रिश्ता तो मेरी ख़ूबियाँ देखो
हर एक इंसान में फिर नुक़्स तो अक्सर निकल आये
बड़े ही काम का है आदमी सो उसकी ख़िदमत कर
अरे वो आदमी जो हिज्र से बाहर निकल आये
प्रशांत सीतापुरी — % &-
ये जो कह रहे हैं हिफाज़त करेंगे
वो जिनमें ज़रा हौ... read more
मैं तुमसे बात कहना चाहता हूँ इक इजाज़त है
मगर फिर डर भी लगता है ये कहने में मुहब्बत है
अधर ख़ामोश रहते हैं निगाहें बात करती हैं
परी का हुस्न है उसका बला है वो कयामत है
कि उसके नर्म लहज़े को मैं उल्फ़त क्यूँ समझ बैठा
सभी से मुस्कुरा के बात करना उसकी आदत है
कभी जो देखना हो तुमको क्या होता है खालीपन
मेरी ज़ानिब चले आना इधर ये ख़ूब दौलत है
दिलों की डोर का साथी ये कैसा खेल है जिसमें
किसी की मैं मुहब्बत हूँ कोई मेरी मुहब्बत है
प्रशांत सीतापुरी — % &-
मतलब नहीं कि दरमियाँ अच्छा बना रहे
मैं चाहता हूँ आपसे रिश्ता बना रहे
ताउम्र जिनसे वास्ते उलफ़त बनायी है
वो शख़्स मेरे हिस्से में धोखा बना रहे
अच्छी तरह से है मुझे दुनिया का इल्म, सो
क्या काम है जो आप सब अपना बना रहे
मुझको बनाना हू-ब-हू मुमकिन नहीं है अब
तुम जो बना रहे मेरा चरबा बना रहे
टूटे अगर तो इत्र सी ख़ुश्बू बिखेर दे
कुछ दस्तकार फूल से शीशा बना रहे
मर्जी से हो रही है अगर जान आपकी
बेकार में फिर आप ये पिंजरा बना रहे
जब तक था मुझमे मैं तो नहीं की थी तुमने क़द्र
अब चाहती हो मुझमें वो लड़का बना रहे
प्रशांत सीतापुरी
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खुल के बता रही मेरे चेहरे की ये चमक
तस्वीर मेरी फोन_में चूमी गयी है आज
Prashantsitapuri-
मैं फ़ना हो जाऊंगा एवज में कोई प्यार दे दे
मैं कैसे जिऊँ ज़िन्दगी ये मशवरा कोई उधार दे दे....
-प्रशांत मिश्रा-
हर वक़्त हर घड़ी यहाँ हर-सू लिए हुये
बैठा है शख्स इक तेरा पहलू लिए हुये
दुश्मन को दोस्तों मेरी हिम्मत ने मात दी
मैं लड़ रहा था एक ही बाज़ू लिए हुये
हिस्सा मुझे बनायें किसी और सीन का
अच्छा नहीं लगूँगा मैं चाकू लिए हुये
रस्ता नहीं था और कोई सुल्ह के सिवा
वो आ गया था आँख में आंसू लिए हुये
दुनिया में एक शक्ल के होते हैं सात लोग
कोई तो आये उसकी ही ख़ुशबू लिए हुये
प्रशांत सीतापुरी-
यक़ीनन कोई तो है काम मुझसे
जो मेरे साथ_अच्छा कर रही हो
प्रशांत सीतापुरी-
शायद कभी वो मुझसे कहे क्यूँ उदास हो ?
इस आरज़ू में यार_____मैं बैठा उदास हूँ
प्रशांत सीतापुरी-
लड़की जो मेरी जान थी उससे बिछड़ के यार
मैं हँस रहा हूँ_____सोचिये कितना उदास हूँ
प्रशांत सीतापुरी-
हँसता अगर ज़मी पे उतरता मैं ख़ुल्द से
इंसान हूँ__सो इसलिए रहता उदास हूँ
प्रशांत सीतापुरी-