**ମୁଁ ଆଉ ରାତ୍ରି**
ରାତି ର ଅନ୍ଧକାର,
ମୋତେ ପ୍ରତିଦିନ ପ୍ରଶ୍ନ କରେ,,
ତୁ କ'ଣ ସତରେ ଖୁସି ଅଛୁ !
ସେ ଗଲା ପରେ..
ଉତ୍ତର ରେ ମୋ ଲୁହ କୁହେ,
ଗ୍ରହଣ ତ କେବେ ବି କରିନି,,
ସେ ମୋତେ ତା ଜୀବନ ରେ ।
ସେ ମୋତେ ପ୍ରଶ୍ନ କରେ,
ପୁଣି ଥରେ,,
ହେଲେ ତୁ ତ ରଖିଚୁ ନା ତାକୁ,
ତୋ ହୃଦୟ ରେ!!
ଉତ୍ତର ରେ ମୁଁ କୁହେ,,
ସେ ତ ଲେଖା ନାହିଁ ,
ମୋ ଭାଗ୍ୟ ରେଖା ରେ ।
ପ୍ରଶ୍ନ ରେ ରାତ୍ରି ପଚାରେ:-
ତେବେ କାହିଁ ତାକୁ ମନେ ପକାଉ,
ତୋର ବ୍ୟସ୍ତ ସମୟ ଭିତରେ??
ଉତ୍ତର ରେ ମୁଁ କୁହେ:-
କାରଣ ମୋତେ ମନେ ପକାଇବା କୁ,
ହୁଏତ ସମୟ ନାହିଁ ତା ପାଖରେ।।-
अधूरी हूं,,
पर दुनिया के लिए पूरी हूँ..
जिस को ज़रूरत पड़ी,,
उसके लिए ज़रूरी हूँ..
वर्ना; बेफिजूल थी,,
बेफिजूल हूँ..-
तेरे बातों के सील-सिले जब कानों में गूंजती हैं..
लबों पे थोड़ी हँसी और आँखें थोड़ी नम हो जाती हैं..
जाने किस पल मैं किसी और का हो जाऊँ..
पर; इस पल मैं सिर्फ तेरा हूँ,,
बस यही बात जेहेन में बार-बार आती है..-
आने वाला कल किसी और का है..
इस पल को हमारा होने दे..
खुशीयाँ तो बाँट लेगा हर कोई..
उस दर्द को बस हमारा होने दे..
तेरा हमसफर हम न सही..
बस अपनी दोस्ती तो निभाने दे..-
Har kisi se nahi,,,
Bas ek tujhse hi mangi hai...
Zyada kuchh nahi,,,
Bas tera saath mangi hai...
Puri zindagi nhi,,,
Bas adhi raah tak mangi hai...-
हर किसी के लिए दिल में प्यार बेशुमार नहीं होता,,
हम चाहे लाख मना लें खुदको..
पर; ये दिल तयार नहीं होता..
क्यों ज़रूरी है बिछड़ना???
इसके सिवा ,
उसके पास और कोई सवाल नहीं होता..-
ए हवा तु जब भी मेरी खिड़की पर आना..
उसकी गलियों से ज़रा गुजरते हुए आना..
वो मासूम सा चेहरा मायूस सा है..
उसके दिल को ज़रा सुकून देते हुए आना..
उसके हँसी की किलकारी लेते हुए आना...-
जिंदगी हमे फिर दगा दे गई..
हम खुशियाँ समेटते रहे,,
और;;
वो हथेली पर आँशु लिख गई..-
दिन गुज़रता है तेरी यादों के शहर में..
रात का तो हम क्या कहें..
तूने तो कह दिया दूर रहना है..
अब इन चाहतों का हम क्या करें!!-
इन आँखों में छलकते आँशुओं को रोकू कैसे..
इस दिल में उमड़ते प्यार को टोकू कैसे..
अब तु ही बता दे..
तेरे इश्क़ में भटके इस दिल को संभालू कैसे..-