उसनें हक़ीक़तों का क़र्ज़ा ले लिया,
इश्क़ को गिरवी रख कर.-
सामनें बैठ के तू भी अज़ीब करती है,
चुप रहकर अपनी आँखों से बात करती है.-
जब खोयाँ में था तब तन्हा तुम भी थी.
जब घबराया में था तब परेशान तुम भी थी.
सोचता हूँ कहीं इश्क़ ना कर बैठूँ क्योंकि
महोब्बत में में होऊँगा और . . . .-
मन की भीड़ को देख कर,
बाहर के सन्नाटे से इश्क़ हो गया.
-०७/१८/२९२४-
तू दूर हो कर भी पास सी लगती है
पता है नहीं मिलेंगे कभी तुझसे,
पर फिर भी ना जाने क्यों
मिलने की आस सी लगती है.
- ७/१८/२०२४-
आवाज़ बहोत करता है, जब टूटता है,
अपना है जो समझे उसको, फ़र्क़ बस उतना है.-
सच को खोजने की चाह मे जूठ लिये फिरते है,
अपनी ही नज़रो में न जाने कितनी बार गिरते है।-
कागा कागा रे मोरी इतनी अरज तोसे
चुन चुन खाइयो मांस
अरजिया रे खाइयों ना तू नैना मोरे
खाइयों ना तू नैना मोहे
पिया के मिलन की आस-
उसने प्यार का ज़िक्र
कुछ इस तरह किया,
नाम पूछा जब 'जाम' का
उसने नाम 'चाय' का लिया.-
सँवर के अपने जिस्म को
उसे चेन ना मिला,
दो बातें प्यार से की,
वो फिर बिखर गया.-