बुलाती है मगर जाने का नइ, ये दुनिया है इधर जाने का नइ. मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर, मगर हद से गुजर जाने का नइ. कुशादा ज़र्फ़ होना चाहिए, छलक जाने का भर जाने का नइ. सितारें नोच कर ले जाऊँगा, मैं खाली हाथ घर जाने का नइ. वबा फैली हुई है हर तरफ, अभी माहौल मर जाने का नइ. वो गर्दन नापता है नाप ले, मगर जालिम से डर जाने का नइ. – राहत इन्दौरी