दर्द कभी दाएं कभी बाएं पहलू से उभरता है
खुदाया मेरा दिल क्यों जगह बदलता रहता है! — % &-
अपने हाथ इतने हल्के रखिए कि जब दुआ के लिए उठे तो आसानी से उठ सकें।
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पीते रहो बेफिक्री से जो भी हाथ आता हैं
कहते हैं कि कुछ ज़हर दवा का काम करते हैं!-
रंग हाथ में लिए
मन की देहरी लांघ आना
कठिन तो था लेकिन
जिसके साथ चलना था
पीछे मुड़ कर
उसे देह से बंधा देखना
उससे भी कठिन था!-
इक ज़रा सी उम्मीद थी कि शायद वह रोक लें
इस भरोसे सुबह का सफ़र,शाम तक टाला हम ने!-
शायद बच गया हो मर जाने से ज़रा सा प्यार कहीं गलती से
मैं आज भी हर रोज़ उसे उम्मीदों की अलमारियों में तलाशती हूं!-
हम- तुम का खेल बस इक दिलकश फ़साना हैं
हकीकत में, यहां कोई किसी का नहीं होता!-
बादलों का जमघट फिर
मन को भारी कर रहा हैं
अब के बारिश में फिर कोई
अपने आंसू छुपाएगा!-
तुम्हारी आवाज़ के हाथो में
दे देती हूँ अपना हाथ
और उसकी एक एक ऊँगली
अपनी उँगलियों में फंसा कर
मरोड़ती हूँ हौले हौले
और क़र्ज़ सा चढ़ा लेती हूँ
खुद पर !
कुछ हिसाब नहीं चाहते
कभी पूरा होना !-