Prof. Rajneesh K. Patel   (© रजनीश कुमार पटेल)
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कविता नहीं ये एहसास हैं मेरे
Joined 18 January 2020


कविता नहीं ये एहसास हैं मेरे
Joined 18 January 2020

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही सजीव लोकतंत्र की पहचान है। इस पहचान को बनाये रखना आपका कर्तव्य है। अपने संवैधानिक कर्तव्य का ध्यान रखें। अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें। सोच समझ कर वोट करें। समझदारी से वोट करें यह आपका अधिकार भी है और कर्त्तव्य भी।

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उस दवा में ज़हर था ज़हर के कुछ फायदे हैं क्या
पुरानी तस्वीरें बोलती हैं तस्वीरों के कुछ वायदे हैं क्या
ज़द में आज वह भी हैं ज़मीर जिनका है मरा हुआ
जाना तो सबको है लेकिन जाने के कुछ कायदे हैं क्या

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मूल्य मिले अब सबको श्रम का
सम्मान श्रमिक का अधिकार रहे
मेहनत से कब पीछे हटता वह
बस साथ पूँजी के यह प्यार रहे ।।
बहा पसीना उसने ही तो सारा यह उद्योग रचा
उसके श्रम से ही तो आखिर पूँजी का श्रृंगार बचा
जीवन मे उजियारा भरता जो जीवित वह शिल्पकार रहे
एक प्रश्न है आखिर उसका जीवन क्यूँ अँधियार रहे।।
रोज आयोजन होता है और भाषण उसके जीवन पर
उसकी जायज़ माँगों पर भी आखिर क्यूं इनकार रहे
नये विधान हम रचते जाते जीवन उसका फिर सूना है
शोषण के खबरों के बिन फिर कोई क्यूँ अखबार रहे।।
जिसने महल बनाया तेरा भूखा अब भी वह सोता है
पटरी पर पलते बच्चों को देख दूर मानवता रोता है
चले योजना कोई भारत में पसीने पर पुरस्कार रहे
श्रम शोषण पर देखो जारी अपना तो तिरस्कार रहे।।

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30 APR AT 20:44

सबको बचाने आया था मैं खलीफा बनकर
खुली है पोल मेरी रह गया हूँ लतीफ़ा बनकर

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30 APR AT 20:36

आहटें आती हैं अब भी
अरमां अब भी मचलते हैं
धूप लगता है साये सा मुझे
यादों के साथ चलते हैं जब भी

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30 APR AT 20:30

बहार बन कर आये थे
मेरी गुलिस्तां में वो
खार दे कर चले गये
मेरी गुलिस्तां में वो

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यह पर्व लोकतंत्र का है मेरे तुम्हारे यंत्र का
कोई राजशाही ये है नहीं प्रश्न है जनतंत्र का
सोच का समृद्धि का अपने देश के गणतंत्र का
मिल कर चोट करें सभी धुन्ध हटे षणयंत्र का
बोलने पर बन्दिशें हटे व्यक्ति के स्वरयंत्र का
विचारों के साम्राज्य में स्थायित्व हो स्वातंत्र का
विकास की गंगा बहे बस सत्य के मूलमंत्र का
श्रम मूल्य मिले सबको जाल कटे अर्थतंत्र का
सौहार्द की हो भावना सहयोग हो धर्मतन्त्र का
एक हवा बस चाहिए मानवता के मूलमन्त्र का
वाणी में हो इतनी स्पष्टता विरोध हो छलतंत्र का
दायित्व है सभी का ये बचे साम्राज्य न्यायतंत्र का


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26 APR AT 13:33

लेकर गये थे दीदार ए शौक हम उनके बज़्म में
लहु रिसता हुआ दिल अपना ले कर लौटे हैं हम
चाक ए ज़िगर हम किसी को दिखायें भी तो कैसे
कसम दे दी है उसने मुझे कि बताना न किसी से
शिक़वा करने का हक़ भी अब हमको नहीं रहा
वो कहते हैं कि गुस्ताखियाँ उनमें हमारा नहीं था
हमें ही शौक था बज़्म की उन रंगीनियों का बहुत
तीर - ए - नज़र तो कभी हमने तो मारा नहीं था

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23 APR AT 17:14

शिक्षा में परिवर्तनों को है समझना जरूरी
सुधार के दावों को ख़ूब है परखना जरूरी
सुनायी जा रही बातों में है सच्चाई कितनी
मानने से पहले है उसको तो जानना जरूरी
एक के नाम पर कहीं अनेक न हो जाये सब
कुछ से हुआ है कहीं प्रत्येक न हो जाये अब
नई योजनाओं में छिपे हो न राज गहरे कहीं
समझ हमारी कहीं अतिरेक न हो जाये अब

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22 APR AT 15:41

चुप रहना मेरी आदत में शुमार है
औरों से तू मेरा व्यवहार तो देख
मेरे हौसले नहीं कमतर किसी से
मेरे आखों में तू ये अंगार तो देख

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