मूल्य मिले अब सबको श्रम का
सम्मान श्रमिक का अधिकार रहे
मेहनत से कब पीछे हटता वह
बस साथ पूँजी के यह प्यार रहे ।।
बहा पसीना उसने ही तो सारा यह उद्योग रचा
उसके श्रम से ही तो आखिर पूँजी का श्रृंगार बचा
जीवन मे उजियारा भरता जो जीवित वह शिल्पकार रहे
एक प्रश्न है आखिर उसका जीवन क्यूँ अँधियार रहे।।
रोज आयोजन होता है और भाषण उसके जीवन पर
उसकी जायज़ माँगों पर भी आखिर क्यूं इनकार रहे
नये विधान हम रचते जाते जीवन उसका फिर सूना है
शोषण के खबरों के बिन फिर कोई क्यूँ अखबार रहे।।
जिसने महल बनाया तेरा भूखा अब भी वह सोता है
पटरी पर पलते बच्चों को देख दूर मानवता रोता है
चले योजना कोई भारत में पसीने पर पुरस्कार रहे
श्रम शोषण पर देखो जारी अपना तो तिरस्कार रहे।।
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