प्रणव   (प्रणव)
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सुन्य हूं मैं या अनंत गगन
कि खुद को मैं खुद ही में ढूंढ रहा हूं।
Joined 14 June 2020


सुन्य हूं मैं या अनंत गगन
कि खुद को मैं खुद ही में ढूंढ रहा हूं।
Joined 14 June 2020
7 JUN 2023 AT 11:45

उसकी यादें धूमिल हो जायेंगी एक दिन

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13 JUN 2021 AT 22:35

प्रिये!
मैं तुम्हारे लिए झुमके भिजवा रहा हूँ

वैसे तो मेरी कल्पनाओं में
तुमने कभी झुमका नहीं पहना
लेकिन मैंने कभी किसी स्त्री को
इनके बिना नहीं देखा है

मैं जानता हूँ
ये झुमके एक स्त्री के लिए
किसी जंजीर से कम नहीं हैं
इसलिए मैं चाहता हूं
कि तुम इन्हें अपने हाथों से तोड़ो
और सड़क पर फेंक दो

ताकि औरतों को ये स्मरण हो
कि ये जंजिरें भी तोड़ी जा सकती हैं

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10 JUN 2021 AT 9:48

दफ़न होता जंगल

हर शहर के नीचे दफ़न है एक जंगल
एक और जंगल को होना है दफ़न

इन जंगलों के साथ दफ़न की गयी हैं कई जानें
जिनकी आत्मायें बैठीं हैं शहर के हर चौक पर
जो देख रहीं हैं उन सभी तैयारियों को
जो शहर की बड़ी बड़ी ईमारतों में की जा रहीं हैं
जिनके जरिये किया जाना है नयी जानों को दफ़न
एक और शहर के लिए

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12 MAY 2021 AT 22:35

मैं तुमसे प्रेम बस इतना ही करता हूँ
जितना किसी कविता की दो पंक्तियों
के बीच रह जाता है

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7 MAY 2021 AT 23:44

हम जल रहे हैं उनके इंतज़ार में
जो पड़े हैं किसी के बाहों में

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7 MAY 2021 AT 20:47

उधर क्या देखता है तु रूक- रूक कर
एक मुद्दत से कोई नहीं आया उधर

तेरी बेचैनी बता रही है 'नुकूश़'
तुम्हारा कोई सामान खोया है उधर

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7 MAY 2021 AT 18:45

तेरी खामोशी किसी को जला न दे

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4 MAY 2021 AT 23:11

आज रो लेने दो मुझे

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28 APR 2021 AT 19:06

अब रातों को हम तन्हा नहीं होते
हमने तन्हाई से दोस्ती कर ली है

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28 APR 2021 AT 17:00

बाब-ए-ईश्क में हमने भी एक नाम लिखा था
जैसे रेत पर किसी ने पानी लिखा था

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