सोशल हुए, स्पेशल हुए, हुए आम से खास
फुल के कुप्पा ईगो चौड़ा सभी कहें सब्बास!
नींद न आई रातों टर-टर मन मेढक भए उदास।
ढूँढा खुरचा बाहें झाड़ी हमको कौन सी प्यास!
रहे मगन नित नए सजन में कहाँ गड़ी है फाँस?
ये भी छोड़ो वो भी छोड़ो बातें करों पचास,
ख़ुद से मिलना भूल गए हैं रख मिडास से आस।

- Pragya Mishra 'पद्मजा'