प्रज्ञा मिश्र   (Pragya Mishra 'पद्मजा')
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Content Creator, Podcaster , Blogger at Shatdalradio, Radio Playback India and Mentza
Joined 20 September 2018


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थकावट जन्य जड़ता
मिलनसार आदमी को भी
कर देती है गुमसुम और उदास
बढ़ती उम्र के साथ

लोग भूलने लगते हैं
समझदारी से काम लेने की आदत
सातों चक्र साथ बोल देते हैं धावा
बढ़ती उम्र के साथ

टू डू लिस्ट के तनाव से बेहतर
जीवन के असंतुलित नृत्य में
उत्पन्न मांसपेशियों पर दबाव
बढ़ती उम्र के साथ।

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समय कोई धारा है
या छोड़ा गया बाण है
या भूत से भविष्य तक
चलती हुई फिल्म में
हरदम मौजूद पात्रों से
उपहार रूपी वर्तमान में
मिलने का समाधान है

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प्रतिदिन प्रेम से जीना भी
अतीत के संबंधों की
उलझी हुई रेखाओं से
निरंतर युद्धरत रहना है

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हैप्पी बर्थडे टू यू

आप हैं सबके फेवरेट
अंशु मोनू के पापा द ग्रेट
पूरे परिवार के लिए
एक मज़बूत संतुलित
दीवाल बन कर आते हैं

ज़िंदगी की पिच पर
राहुल द्रविड़ की द वाल जैसी भूमिका में
मिश्र परिवार के आलोक हमें
जीवन की धूप, बरसात
और आँधियों से बचाते हैं

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दीवार

घर की आल पर चित्र बने हैं
रेलवे जंक्शन पर संस्कृति का कैनवास
भित्तिचित्रों से सजे हैं
शिल्पकारों के अंतःपुर

यहां दीवारें स्तंभ हैं
झुग्गियों के प्राकार नहीं
टेक हैं, सहारा हैं, आलंब है
हृदय का प्राचीर नहीं

मज़बूत, संतुलित, सजावट योग्य
जिनपर नन्ही पेंसिल भविष्य लिखे
दुनिया में चाहिए बस ऐसी दीवारें
जहां सभ्यता की छाप दिखे

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तारामंडल और निहारिकाएं
उसे बचपन से जानते होंगे
चंदा मामा की कहानियों में
सूरज, आज एक नायाब शय है

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चमकती आँखों से दिखते
आकर्षक तारों का व्यास
सूर्य से सैकड़ों गुणा बड़ा सही
धरती को सूरज ने सँवारा है

हमारा सबसे ज़रूरी सितारा
सजातीय पिंडों की तुलना में
थोड़ा छोटा सही, पृथ्वी पर
जीवन का वही एक सहारा है

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प्रेमियों के लिए नहीं
गुलों का गुलदस्ता
फूल है सूख जाएंगे
इश्क़ में मिलने वाले
उम्र भर ताज़ा रहें
ऐसे कांटे देकर जाएंगे

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समझा बुझा कर मना लेना
सवाल पूछने पर डरा देना
जो उत्साहित हैं वे बुझ जायेंगे
निर्भीक, जान के डर से घर जाएंगे

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सब समय का खेल है
समय भविष्य की रेल है
समय से पहले बात नहीं बनती
समय पर सारे काम बन जाते हैं
बुरा समय हरदम नहीं होता
बुरे समय में कोई सगा नहीं होता
समय से बड़ा शिक्षक नहीं होता
समय की लाठी जिस पर पड़ती है
उसे सारे सबक मिल जाते हैं

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