प्रज्ञा मिश्र   (Pragya Mishra 'पद्मजा')
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Content Creator, Podcaster , Blogger at Shatdalradio, Radio Playback India and Mentza
Joined 20 September 2018


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न केवल कंज़र्वेटिव होना चाहिए
न केवल लिबरल होना चाहिए
जिसमें सच बोलने का साहस हो
ऐसा मनुष्य होना चाहिए

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गायत्री मंत्र का स्मरण करना है
जैसे ही लगे खाली दिमाग
ॐ नमः शिवाय जपना है
नियमित यही आचरण रखना है

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गया नागपुर का
फ्लाई ओवर
जनरल स्टोर की
बालकनी पर

जाने किसकी
मिली भगत पर
डाल दिया सब
घुसपैठ पर

काम गडकरी के
अरे धत तेरी के !

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दोराहे का सही रास्ता हरदम मुश्किल होता है,
प्रश्नपत्र का सही उत्तर हरदम जटिल होता है!

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सपनों और अधूरी ख्वाहिशों के साथ
एक दिन तुम चालीस पार कर जाओगी
ग्रंथियों के भंवर में पड़ जाओगी
उस दिन बहुत निराशा होगी
कभी आगे कभी पीछे देखोगी
कुछ दिन जीवन उदास रहेगा
मन थककर जैसे चूर लगेगा
फिर अपने टुकड़े खुद ही चुनकर
एक रोज़ सुबह उठजाओगी
तुम नए प्रयोग अपनाओगी
फ़ानी दुनिया संग कदम ताल में
कमर कस कर जुट जाओगी...
तुम पीछे नहीं हट पाओगी...

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थकावट जन्य जड़ता
मिलनसार आदमी को भी
कर देती है गुमसुम और उदास
बढ़ती उम्र के साथ

लोग भूलने लगते हैं
समझदारी से काम लेने की आदत
सातों चक्र साथ बोल देते हैं धावा
बढ़ती उम्र के साथ

टू डू लिस्ट के तनाव से बेहतर
जीवन के असंतुलित नृत्य में
उत्पन्न मांसपेशियों पर दबाव
बढ़ती उम्र के साथ।

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समय कोई धारा है
या छोड़ा गया बाण है
या भूत से भविष्य तक
चलती हुई फिल्म में
हरदम मौजूद पात्रों से
उपहार रूपी वर्तमान में
मिलने का समाधान है

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प्रतिदिन प्रेम से जीना भी
अतीत के संबंधों की
उलझी हुई रेखाओं से
निरंतर युद्धरत रहना है

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हैप्पी बर्थडे टू यू

आप हैं सबके फेवरेट
अंशु मोनू के पापा द ग्रेट
पूरे परिवार के लिए
एक मज़बूत संतुलित
दीवाल बन कर आते हैं

ज़िंदगी की पिच पर
राहुल द्रविड़ की द वाल जैसी भूमिका में
मिश्र परिवार के आलोक हमें
जीवन की धूप, बरसात
और आँधियों से बचाते हैं

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दीवार

घर की आल पर चित्र बने हैं
रेलवे जंक्शन पर संस्कृति का कैनवास
भित्तिचित्रों से सजे हैं
शिल्पकारों के अंतःपुर

यहां दीवारें स्तंभ हैं
झुग्गियों के प्राकार नहीं
टेक हैं, सहारा हैं, आलंब है
हृदय का प्राचीर नहीं

मज़बूत, संतुलित, सजावट योग्य
जिनपर नन्ही पेंसिल भविष्य लिखे
दुनिया में चाहिए बस ऐसी दीवारें
जहां सभ्यता की छाप दिखे

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