कविता प्रेम रचते रचते
निर्गुण हो जाती है
पवित्र अग्नि में बदल जाती है
जिसमें राग स्वाहा हो जाता है
और मन कुंदन.- Pragya Mishra 'पद्मजा'
23 SEP 2018 AT 15:45
कविता प्रेम रचते रचते
निर्गुण हो जाती है
पवित्र अग्नि में बदल जाती है
जिसमें राग स्वाहा हो जाता है
और मन कुंदन.- Pragya Mishra 'पद्मजा'