खिला एक अकेला फूल
अपनी पूरी प्रजाति की
संभावना तय कर लेता है
अपनी तुलना अन्य फूलों से
नहीं करता है, वह स्वयं विशिष्ट-
एक खूबसूरत बगीचा
कभी अपना था
जैसे सपना था
सहज उपलब्ध
वह सुखद समय
इतना सुलभ था
जैसे दुर्लभ था-
काम करने से सचेती मिलती है
सचेती मिलने से संगत बदलती है
संगत बदलने से सीरत संभलती है
सीरत संभलने से सूरत बदलती है-
सोशल मीडिया के एल्गोरिथम
निम्न स्तरीय कंटेंट को
कम्युनिटी स्टैंडर्ड के मुताबिक बताते हैं,
रिपोर्ट किए जाने पर भी नहीं हटाते हैं।-
ऑफिस से लौट सांझ की बेला में
देखती हूं तुलसी का पौधा
शाम का दिया जलाती हूं
देखती हूं तुलसी के पत्तों का चेहरा
प्रतिदिन घूम जाता है सूरज की ओर
रात में पत्ते खुला असमान देखते हैं
मिट्टी के दिए की नन्हीं सी लौ
गमले में स्थापित तुलसी को देखती है
दिए की लौ में सूरज बनने की आशा है-
सूक्ष्म आक्रोश
उपेक्षित लघु मानव का
सूक्ष्म आक्रोश
दही, चीनी,
आलू चिप्स खाकर
या किसी नेता के
आश्वासन पाकर
शांत नहीं होता,
यह धीरे-धीरे
परिवर्तित होता है
भीड़तंत्र के दलदलासुर में
जो एक दिन आक्रांत की हत्या कर के
दैत्याकार सुख भोगता है-
आज भी भारत की सामूहिक चेतना में
एक्स फैक्टर, ब्लिंग और ग्लैमर की कमी है
क्योंकि हमारी चिंता ने शामिल हैं
निरंतर शहरी गरीब की श्रेणी में धकेले जा रहे
मध्यवर्ग के वे सभी साहसी प्रवासी
जिनकी कामनाएं महंगाई से थमी हैं
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कस्बे की असुविधा को अंधेरा मानकर
लोग प्रवासी बनते हैं पलायन करते है
गरीबी से उठ कर मध्यवर्ग होने की चाह में
शहर के शोर में भागीदार बनते हैं
यह अंधकार से प्रकाश की ओर
जाने कैसी यात्रा है
जिसमें एक जगह बैठकर
हम पूरी पृथ्वी को गंदा करते हैं
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लंबी बात चीत के बाद एक दूसरे से
प्रशिक्षित हो चुके चैट जीवी
अनुभव में जोड़ते हैं नए अनुबंध
लगातार आउट डेटेड होती चैट विंडो में
इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट जैसे
जमा हो रहे हैं आभासी सम्बन्ध,-