हँसने रोने की यादों से बनी
घर की दरोदीवार को
बदलना नामुमकिन था
तो नज़रिया बदल लिया
भूल कर पुरानी सहूलतें
जो अब दस्तरस नहीं थे
ज़िंदगी में आबोहवा का
ज़रिया बदल लिया
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सेब संतरा अमरूद केला बनने की
अनिवार्यता के बीच
मैं एक आम आदमी हूं
मेरे पास समय नहीं है
नींद के साम्राज्य पर विजय पा चुके
नेटफ्लिक्स आदि देवता हैं
ओटीटी का दर्शन
समय का दुरूपयोग नहीं है-
समय नहीं है
सुबह उठते ही कामपर भागना है
जागने का समय नहीं है,
बायोमेट्रिक पर अंगूठा टांकना है
जिज्ञासा का समय नहीं है,
प्रवेश पाते ही पसंदीदा होना है
मौलिकता का समय नहीं है-
सामाजिक विकृतियों के प्रति
बढ़ते सेलेक्टिव एलज़ाइमर में
निकलता नहीं निरपेक्षता का टेंडर
इंसाफ की डगर खड्डों से मुक्त कब होगी?
आपसे हल नहीं होता भाषा का विवाद
आवाज़ के हक़ में बात कब होगी
*निरपेक्षता – पक्षपात रहित सत्य
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अक्सर हमारी अच्छाई
अधीरता के बादल से
घिर जाती है
फिर लोग कहते हैं
सब कुछ तो ठीक था
बस एक ही बुराई थी...-
जुलाई दस्तक दे रही है
शस्य श्यामला मुंबई के अपार्टमेंट
शिफ्ट हो गए खिड़कियों पर
चाय के कप कर रहे
कविता की वर्कशॉप-
सितार के तार जैसी
बारिश की लड़ियां
लड़ियों को छेड़ने लगी
हवा की उंगलियां
डाक पोस्ट के बादल
केरल से चले धीमे धीमे
मानसून आ गया
मिटाने प्रेमियों की दूरियां
ताप और अकुलाहट से
विरह में सुख चुकी नदियां
धीरे धीरे लौटने लगी
छूने लगीं हैं पुरानी पगडंडियां-
उतावलेपन में बोले गए शब्दों से
संबंधों की मिठास गुम होती रही
बातचीत में कभी दिल न लगाया
जवाब देने की फ़िक्र होती रही
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जहां चोट लगती है
रक्तरंजित होता है मन
वहीं से प्रवेश पाती है
आशा की एक किरण-
त्यौहार में पास रहते हैं
दुख में साथ रहते है
हम आम लोग हैं
अपने आशियाने में
आज़ाद रहते हैं-