अपनी दुआओं को पूरा होते देख चौराहे पर भटकता याचक घुटने टेक रोता है प्रश्न पूछता है तुम कैसे ईश्वर हो जिसे आश्वासन के लिए बकरे के रक्त की आवश्यकता हुई ठीक ठीक समझें तो ईश्वर का न्याय एक कीमोथेरेपी है वह अच्छी और बुरी कोशिकाएं एक साथ मारता है
यदि चलते चलते कोई कहीं नहीं पहुंचा है कभी तो लोग चलते क्यों हैं क्या चर्बी घटाने के लिए ? यदि बुद्धिमत्ता निराशा देती है तो लोग विचारक क्यों बनते हैं क्या संतोष से मर जाने के लिए? यदि पुल बनाने वाला भविष्य में बंदर कहलाता है तो निर्माता पुल बनाता क्यों है क्या सेनाओं द्वारा उजाड़े जाने के लिए?
जब हम एक उद्देश्य तक पहुंचने के लिए यात्रा आरंभ करें तो ये मान कर निकलें कि उद्देश्य प्राप्ति के बाद अंतिम पड़ाव पर हम कहीं नहीं होंगे केवल भविष्य होगा इस बात में जितना दुःख निहित है इस बात से उतना ही संतोष भी होगा
किसी से अच्छी बातचीत और परिचय होने का यह अर्थ नहीं है कि लोग आपके स्किल के कारण फटाक से मुफ़्त में काम निकलवाना चाहें, एकदम ना कर के अपने सबसे प्रिय व्यक्ति के लिए अपने आपको फ्री रखना चाहिए।