प्रज्ञा मिश्र   (Pragya Mishra 'पद्मजा')
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Content Creator, Podcaster , Blogger at Shatdalradio, Radio Playback India and Mentza
Joined 20 September 2018


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लिखते लिखते लिखना आता है
पढ़ते पढ़ते पढ़ना और बोलते बोलोते बोलना
लेकिन देखते देखते, देखना नहीं आता
इसलिए प्रेम का दीपक जला कर
उजाले को हथेली पर रखते हैं
प्रेम की लौ दो आंखों में भर
ऊष्मा को महसूस करते हैं
तब जाके उगता है उर में उजास

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सुनो मेरे हैप्पी धनतेरस

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में
त्रयोदशी और चतुर्दशी की विशिष्टता
सतयुग में सागर मंथन से है
त्रेता में सरयु तट पर श्री राम आगमन
द्वापर में नरकासुर वध, नवयुग में निर्वाण और
बुद्ध के कपिलवस्तु लौटने से है

लेकिन मेरे लिए हर युग में
तुम्हारा न होना ही मेरा कृष्ण पक्ष है
तुमसे मिलने के प्रयत्न मेरे दीपोत्सव
तुम्हारे साथ जागना मेरे शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा हैं
तुम सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, ऋतु चक्र के साथ
जीवन में नवीनता का उत्साह भी हो

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द्वापर ने दीप प्रज्वलित कर खुशी मनाई
कृष्ण की रक्षा करती भार्या सत्यभामा ने
जब भू देवी बन नरकासुर पर विजय पाई
नरक चतुर्दशी सबकी छोटी दिवाली कहलाई

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अयोध्या लौटे राम-लखन जनक सुता संग
अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा पूरी की
त्रेता में सरयु के तटों ने दीपोत्सव देखा
कथा बनी बुराई पर अच्छाई के विजय की

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सतयुग के सागर मंथन से
देव दानवों के अथक श्रम से
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में
धनवंतरी का प्रदुर्भाव हुआ
धन त्रयोदश शुभारंभ हुआ,
धनतरेस के शुभाशीष से
स्थिर लक्ष्मी के सुस्वभाव से
सबके घर सुवासित हों
जीवन सुधा सुरक्षित हो
कतार के लघु मानव का
पाकपात्र पहले पूरित हो

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खिला एक अकेला फूल
अपनी पूरी प्रजाति की
संभावना तय कर लेता है
अपनी तुलना अन्य फूलों से
नहीं करता है, वह स्वयं विशिष्ट

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एक खूबसूरत बगीचा
कभी अपना था
जैसे सपना था
सहज उपलब्ध
वह सुखद समय
इतना सुलभ था
जैसे दुर्लभ था

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काम करने से सचेती मिलती है
सचेती मिलने से संगत बदलती है

संगत बदलने से सीरत संभलती है
सीरत संभलने से सूरत बदलती है

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सोशल मीडिया के एल्गोरिथम
निम्न स्तरीय कंटेंट को
कम्युनिटी स्टैंडर्ड के मुताबिक बताते हैं,
रिपोर्ट किए जाने पर भी नहीं हटाते हैं।

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ऑफिस से लौट सांझ की बेला में
देखती हूं तुलसी का पौधा
शाम का दिया जलाती हूं
देखती हूं तुलसी के पत्तों का चेहरा
प्रतिदिन घूम जाता है सूरज की ओर
रात में पत्ते खुला असमान देखते हैं
मिट्टी के दिए की नन्हीं सी लौ
गमले में स्थापित तुलसी को देखती है
दिए की लौ में सूरज बनने की आशा है

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