प्रज्ञा मिश्र   (Pragya Mishra 'पद्मजा')
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Content Creator, Podcaster , Blogger at Shatdalradio, Radio Playback India and Mentza
Joined 20 September 2018


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ऑफिस ऑफिस

उठते रहे वो सीट से पानी की आस में
फिर पाँच बजे उठेंगे कॉफी की प्यास में

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हे शंभू! मन में बसी है तेरी आस
तेरा बिखरा है जग में सुवास

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कल मुझे अपने भीतर अहंकार की थोड़ी सी झलक दिखी, मुझे किसी ने पूछा मैं शहर के किस ऑफिस में जाती हूं, मैंने एक जगह का नाम सीधे सीधे लेने के बजाय थोड़ा विस्तार में उत्तर दिया जो अनावश्यक था। इससे सामने वाले का और मेरा दोनों का समय नष्ट हुआ और श्रेष्ठता भ्रम का प्रदर्शन हुआ।

ईश्वर विनम्रता प्रदान करें। जाने ये वर्ष के नक्षत्रों का प्रभाव है या क्या पिछले गुरुवार मैंने एक कलीग से अचानक चिल्ला कर बात की और बाद में माफ़ी मांग कर भरपाई करने की कोशिश करती रही पर मुझे कितना हारा हुआ लगता रहा कि मेरे सारे योग ध्यान और खानपान का किया कराया पांच सेकंड के क्रोध में नष्ट हो गया और फिर ऊपर से किसी से मेंटल हेल्थ पर बहुत सारे प्रवचन सुनकर और भी गुस्से से मन भरता रहा।

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भरी सभा में नेता बोले
"आए भारी मात्रा में लोग"
संख्या और तादाद
सिधार गए परलोक

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सौ करोड़ का फ्लैट बनाया
गुड़गांवा जिट जैट बनाया
बनाई न नाली अच्छी वाली
पानी में गई किस्मत पैसे वाली

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मन के धागे जुड़े जुड़े से हैं
लगता है हमारे
होश उड़े उड़े से हैं

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जब अर्जित ज्ञान, अहंकार बनकर
अधीनस्थ के उपहास में बदल जाता है
तब महान मंचासीन व्यक्ति भी
मन से उतर जाता है

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आधे अधूरे चेहरे की
तस्वीर सी बन जाती है
प्यारी दोस्ती अक्सर
जीने की वजह बन जाती है

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Clean water, clean air
warmth of human touch
Green atmosphere
abundant, ye so rare

Relics of dear life
Never divided fairly
accessible to them who are
Esteemed professionally

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Surrendered, as souls
sculpted for somebody else—
spending lifetimes
building cozy studios of self-doubt.
We never asked—
What do we
really, really desire?

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