कैसा है वो दोस्त मेरा और कहाँ है, कोई बता दो
वो बंदा क्या सच में सब जानता है, कोई बता दो
अगर ऐसा है तो पूछना उससे मेरे होने का पता
यार ये पागल सा लड़का लापता है, कोई बता दो
खुद के भीतर भी एक अजब सी कोशिश जारी है
मुझमे ये मैं खुद हूँ या वो खुदा है, कोई बता दो
राम, रहीम, जीजस, और वाहे गुरू को ठोकना तुम
उन में कौन मुझे अपना मानता है, कोई बता दो
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कैसा है वो दोस्त मेरा और कहाँ है, कोई बता दो
वो आया नहीं या बादलों में छिपा है, कोई बता दो
आना, ठहरना और फिर एक वक्त से ही ढ़ल जाना
गगन चाँद का ससुराल है या मायका है, कोई बता दो
रात गुजर जाती है टुकड़ों में उसे निहारते हुए
नींद ना आने का इलाज क्या है, कोई बता दो
ये उसी की शरारत है क्या वो जो ऊपर बैठा है
वो बंदा सच में क्या सब जानता है, कोई बता दो
अगर ऐसा है तो पूछना उससे मेरे होने का पता
यार ये पागल सा लड़का लापता है, कोई बता दो
खुद के भीतर भी एक अजब सी कोशिश जारी है
मुझमे ये मैं खुद हूँ या वो खुदा है, कोई बता दो
राम, अल्लाह, जीजस, और वाहे गुरू को ठोकना तुम
उन में कौन मुझे अपना मानता है, कोई बता दो-
वक्त गुजर रहा है बस
ये रात बस कट रही है
नींद कहाँ है आँखों में
थकान थोड़ी छट रही है
थकान भी जिस्म की ना
थकान है मिज़ाज की
वो भी कल की फिक्र में
अब नींद उड़ी है आज की
सोच है कि ये रास्ता मेरा
गलत है या फिर ठीक है
मेरी मंजिल कितनी दूर है
या क्या तनिक नज़दीक है
वो है भी या बस वहम है
इस बात का ही डर लगा है
मगर रास्ते की फिक्र किसे
नतीजा देखने शहर खड़ा है
पर सुबह ना वक्त जाया कर
जरा खुद को आजमाया कर
वरना हर रात यूँ ही ये जिस्म
बिस्तर पर अधजगा रह जायेगा
या तो पूरा शहर चलेगा पीछे तेरे
या फिर शहर खड़ा रह जायेगा ।।-
यादों में गरजता गुस्सा
और सीने में तेज आँधी
होंठों पर तेरा किस्सा
आँखों में भी बुन्दा बांदी
कभी जज़्बात का धोना
कभी एहसास का मौसम
बड़ा नटखट सा लगता है
मुझे बरसात का मौसम-
देर रात बात करना, या
हर रोज़ यूँ मुलाकात करना
दिन गुजारना देख एक चेहरे को
शाम उसी काँधे पर रात करना
ये सब तो गुजरे किस्से थे
हाँ, बेशक़ मेरे भी हिस्से थे
मगर अब मिट गई है मुझमे शाम
दिन भी जैसे ढ़ल चूका है
जिस काँधे पर चाँद टंगा था
वो काँधा कहीं को चल चूका है
दीदार हर रोज़ होता है
बातें भी होती है कितनो से
मगर छूट चूका है पीछा मेरा
सब मुहब्बत वाले सपनों से
दिल धड़कता तो है, पर
कोई चेहरा नहीं संजोता है
आँखें अब भी मिलती रहती है
मगर अब इश्क़ नहीं होता है-
ये बरसते बादलों को देख मन नहीं है अब नहाने का
लो आ गया है वक्त फिर एक खूबसूरत से बहाने का
बारिश की बूँदों से लिपटकर जिस्म कहीं खो गया है
पर मिट्टी की खुशबू में दिल जरा मटमैला हो गया है-
यूँ ख़्वाब पलकों से ना उतारा कर
ज़िंदगी तू जीने से ना किनारा कर
इश्क़ में जो टूट गया है वो दिल तेरा
तू दिल से कह दे, इश्क़ दोबारा कर-
मुझे भी ये अंदाज नहीं
कि कितना टूट चूका हूँ मैं
पर उतना तो निश्चित ही
जितनी कलियाँ बाग से
या कच्चे फल पेड़ों से
झोपड़ी की छत की तरह
या टूटे रिश्ते जितने मुंडेरों से
कहीं शायद इससे भी ज़्यादा
यानी टुकड़ा भी टूटा आधा आधा
सरहद से हो घर की दूरी जितनी
रेगिस्तान की नदियाँ अधूरी जितनी
या लहरों से जितना किनारा टूटे
कोई जितना आधे नंबर से सीट चूके
इतना कि जूड़ने से भी नी जूड़े
गाँठ लगे, या लचक से ही मूड़े
पर हर उस मेरे छोटे टूकड़े में
पाँव, हाथ, या इस मुखड़े में
हो तुम पूरी की पूरी ज़िंदा
जैसे वो ईद के आधे चाँद में भी
मुहब्बत ऊभर ऊभर कर आता है
वैसे ही मेरे हर एक बिखरे अंश में
मेरा दिल फिर तुझको पूरा पाता है-
हम जो अगर उस चेहरे से रूठ जायेंगे
ये ख़्वाब अब पलकों से किधर जायेंगे
ढूँढेंगे ठिकाना मगर कहाँ ही मिल पायेगा
ये कुछ दिन जीयेंगे और फिर मर जायेंगे-
खुद में ही एक दुनिया सजाकर रखा है
मुहब्बत को भी ख़्वाब बनाकर रखा है
लोग चेहरे पर भी परेब पहने मिलते है
उसने हाथों में भी दिल छिपाकर रखा है-