जेठ में बरसात की आस लिए बैठा हूँ
दिन के उजाले में चिराग लिए बैठा हूँ-
निगाहों के चयन आँखो के सपन हो तुम
खुद को निहारूँ मैं जहाँ वही दर्पण हो तुम
मेरी आँचल के सितारे मेरी मांग के तारे
मेरे सुने मन आंगन के नीलगगन हो तुम
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सहसा हुआ एक उद्घोष
बिजली चमकी बड़ी जोर
केशव स्वयं प्रकट हुए
फैली दीप्ती चहु ओर
फिर वे बोले
तुम्हे बचाने मैं नही आया
युद्ध नीति से परे समर में
तुमको खुद ही लड़ना होगा
त्याग श्रृंगार , योद्धा बनना होगा
रक्तरंजित दुर्गा चंडी का रूप
रणभूमि में धरना होगा
हिम्मत न हारो
उठो उठो पंचाली
इन दुष्ट दुर्जनो का दलन
तुम्हे ही करना होगा
महिषासुर मर्दनी तुम्हे बनना होगा-
हर घड़ी हर वक़्त तेरा चेहरा नजर आता है
जबसे देखा तुम्हे न जाने दिल क्या चाहता है
सारे पैतरे जानता हूँ तैरने का हुनर भी आता है
फिर भी तेरी आँखों में डूब जाने को जी चाहता है-
तारीफ जो तेरी करने बैठूँ
कई रातें गुज़र जायेंगी
बना के नींदों की रोशनाई
गीत गज़ले गढ़ी जायेंगी
इस अद्भुत अनुपम छवि गान को जो बांधे
वो लयकारी मनहर भाषा कहाँ से आएगी
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रबड़ी बिखडी पड़ी है
सड़को पर !
लूटने में हिस्सा
अपना अपना सब लगे पड़े है
ऐसी सियासत देख के
भारत भूमि रो रही और
हम अंदर तक हिले पड़े है
इनको कोई बताओ जरा
नही तुम्हारे लिए
नही हमारे लिए
ये मौसमी रहनुमा
बस वोटों के लिए खड़े है !
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आया सुराज
जयकारो में
किताबो और
अखबारों में
दीन हीन
आश्रित अब भी
दिल्ली के धूर्त
दरबारों पे-
वक़्त बदलता है
मौसम बदलता है
पर न ये दरिंदे बदलते है
न ये मंजर बदलता है
सरकारें आती है
सरकारें जाती है
पर न सियासत बदलती है
न आदत बदलती है
चेहरा बदलता है
झंडा बदलता है
पर न हालात बदलते है
न ये देश बदलता है-
भाषा मात्र नही संस्कार है ये हिंदी
दिलो को जोड़े जो वो तार है ये हिंदी-
कहावत बड़ी पुरानी है
समय बहता पानी है
मिलन विरह का संगम
जिसमे होता हर पल
जैसे खोलता जन्म नयन पल पल
मूँदती मौत उसे क्षण - क्षण-