फिर किसी की बेटी को दरिंदों ने नोचा होगा
नही गूंजी चीख उसकी, शायद मेरा देश फिर से बिका होगा
उस अकेली शेरनी पर ना जाने कितने भूखे भेड़ियो ने झपटा होगा
दर्द में चिलाई होगी कितने दिन, पर हर बार उसके मुँह को दबोचा होगा
उस बेटी को न जाने कितना तड़पाया, उसकी रूह तक को सताया होगा
बच गई कुछ साँसें उसकी, उन्होंने इंसानियत को भी जलाया होगा
उस बाप पर क्या बीती होगी, न जाने कितने सपनों को उसने संजोया होगा
उस बेटी की हर उखड़ती साँस के साथ,अपने हर सपने को उसने मरता देखा होगा
कैसे बनेगा देश महान,जहाँ नारी की इज़्ज़त का व्यापार होगा
उम्र तक का ना लिहाज़ यहाँ पर,हर दूसरे दिन बलत्कार होगा
बचा लो इंसानियत वरना एक दिन तम्हारी घर की माँ बेटी को भी इन्होंने रुलाया होगा
शर्म करो दरिंदो,तम्हारे घर पर भी किसी न किसी औरत का साया होगा।।
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