पौ फट चुकी है
घड़ी पर सात बज चुके हैं
बाहर किवाड़ खोलते ही
मैंने देखा
एक लंबी दुधियाली चादर
जिसे ओढ़े सोई हुई धरा...
सामने बरगद के घोसलों से
खग दल चिहुंकते
खेतों पर से तीतर
पेड़ की टोह से झींगुर गाता...
लगता है जैसे शिशिर आ गया...
-
यहाँ की स्थानीय भाषा सादरी के अनुसार
Rour का अर्थ "आपका"
K... read more
सहर में लगा था
एक व्यापारिक मेला
जिसके एक कोने पर था
पुस्तकों का ठेला
जिस पर बिच्छी थी
एक से बढ़ कर एक किताब।
अजी रुको....!
हिंदी के नहीं
सारे अंग्रेजी किताब।।
मैंने पूछा
क्यों भाई साहब
हिंदी का कोई उपन्यास नहीं
उसने कहा
नहीं मैडम!
इसका कोई पाठक नहीं।
अतः आवश्यक यह है कि आप इसे
बोलचाल तक सीमित न रख कर इसे पढ़ें इसे जानें।
ताकि आप भी यह जान सकें कि हिंदी हमारी भाषा कितनी समृद्ध है।
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।🙏
-
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती
लहरों से डर कर नौका
पार नहीं होती.......
चांद जो कभी सपना था
आज वह अपना है......-
वह जंगल के हर एक
पत्ते को जानता है।
फूल पौधे लताओं
हर एक को वह पहचानता है।
खेतों के आड़ में छिपे
केकड़ों घोंघों
नहरों तालाबों में
मत्स्य, सेतुवे,
उन्मुक्त गगन में उड़ते
पंछियों,
धरती पर रेंगते
सांप,बिच्छू, केचुवों
हर किसी से वह वाकिफ...
इसलिए नहीं की वह जंगली है
वरन ,इसलिए कि
इस भूखंड से उसका संबंध आदि से है।
"और इसलिए वह आदिवासी है।।"
-
वह पुरुष नहीं
जिसके लिए
उसका शरीर
बस आंखे सेकने की वस्तु हो।
अनुशीर्षक में.....
-
कहते हैं,
"एकांत सबसे शोर और कोलाहल वाली जगह है।"
जहां एक भी आवाज़ को सुन पाना
असम्भव सा लगता है
पर जो सुन लिया तुमने, तो समझो
एकांत में भी सार्थकता है.......-
वो रोज़ अधि नींद से जागते
हमारे लिए टिफिन बनाते
वही "रोटी और आलू की भूजी"
जिस से मेरी सहेलियां
बड़े अच्छे से परिचित हैं।
हमें स्कूल के लिए तयार करते
बालों में रिबन लगाते
जब स्कूल की छूटी होती
पापा,वहीं चौखट पर,
रोज़ बैठे हमारी राह देखते।
शाम को साईकिल पर
थोड़ी सैर करा लाते ।
शिक्षा दीक्षा में कभी उन्होंने
कोई कमी होने ना दी।
परवरिश में हमारी अधि
जिन्दगी बीता दी।
दोस्त यार सभी छूट गए
दुनिया हम में सिमट कर रह गई।।
जिन्होंने यह देखा है
वो आज भी कहते हैं
उनके जैसा पिता का मिलना नामुमकिन है।।
-
छोटा बालक,
युवा,
बुजुर्ग या अधेड़ इंसान
इंसान उम्र में चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए
उसे चाहिए प्यार और दुलार।।
घर न आने की भले हो वजह हजार
पर
वापस लौट कर आने की वजह ही है "प्यार"।।-
यूहीं लहराता रहे
हमारा यह ध्वज
इन तीन रंगों को समेटे
कि कोई मज़हब ना बांट सके,इन रंगों को
जाती धर्म और वर्ण में....
तिरंगे का रंग कह रहा है कि हम सब एक हैं।
स्वतंत्रता का ७५ वा वर्ष
और अमृत महोत्सव
आप सभी को ढ़ेरों शुभकामनाएं।
-