ज़िन्दगी के ये जो दो पहलू है ना
उतार -चढ़ाव
ये हूही नहीं होते
ये कुछ सीखा कर ही जाते है।
कभी कुछ दे कर जाते है,
और कभी सब कुछ ले कर जाते हैं।।-
मेरे संघर्ष का सफर बहुत लंबा था,
लेकिन मंजिल वाकई बहुत खूबसूरत है ।।-
ज़िंदगी जीने का सलीका
ज़िंदगी ने इतना सिखाया
की रिश्ते इतने रंगीन होते हैं,
ये आज पता चला ।-
ज़िंदगी का ये सफर
सास से शुरू हुआ
सास पे रुक जाएगा,
हार ही मिली मुझे, हर मोड़ पे ,जीत की एक आस मे।
गिर गई जब मोड़ पे, उठ कर किया खुद को सलाम है,
हौसला ना टूटा था, ना ही टूटेगा, क्योंकि
ले लिया संकल्प मैंने
जीत मिलने तक मौत से भी लड़ जाऊँगी ।।
ज़िन्दगी का ये सफर
सास से शुरू हुआ
सास पे रुक जाएगा ।।
Priyanka Tiwari
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उलझने बहुत हैं, पता नहीं कब सुलझेंगीं?
रात दिन की अब परवाह नहीं
पता नहीं कब राह दिखेगी ?
बचपन में , मैं जिन खिलौनो से खेला करती थी
आज मैं ख़ुद खिलौना बन गयी
वो टूटे हुए खिलौने जिन्हें तोड़ कर मैं रोया करती थीं
आज ख़ुद टूट गई ।
अब आँखों ने भी बोलना शुरू कर दिया है
थक गयी हुई , आराम चाहिय
लेकिन इन कामखत अंशुओं को कौन समझाये?
क्या सच मे समय आ गया है
चिंता को चीता पे बैठाने का।-
कोई चूक हुई है क्या हमसे , जो तुम यू रूठी हो,
आईना हो तुम मेरा, तुम्हें
देख कर समझ लेता हू।
यू आँखें दिखा कर ,चेहरा ना फेरो हमसे
तुम्हें महसूस करता हू ,इसलिए
बिना कुछ बोले सब कुछ समझ लेता हू ।
ये आँखें तुम्हारी हैं ज़रूर
पर इन आसुओ पे हक हमारा है
यूही नहीं ,सात जन्मों का नाता तुमसे हमारा है ।
गलती से कोई गलती हो जाये ,तो उसे भूल समझ कर माफ कर देना,
शाम को जब घर लौटू , तो आँखों से ही प्यार की बरसात कर देना ।
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नारी है तू
नर नहीं
जो यूही टूट जाएगी
आ गया जो ये पड़ाव भी तो , तू पार कर जाएगी ।
रख भरोसा खुद पे
आ गया वो दिन है
पारकर के तू ये तूफ़ान भी
आसमान में लहराएगी ।
नारी है तू नर नहीं , जो यूही टूट जाएगी ।
तू है दुर्गा ,तू है लक्ष्मी
तुही लोहे की वो धार है,
जो तोड़ कर इन पाबंदियों को पार कर जाएगी।
नारी है तू नर नहीं , जो यूही टूट जाएगी ।
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हार का भय नहीं
जीत की उल्लास नहीं
कर्म पथ के कर्मों का मिल रहा,
अब परिणाम है ।
क्या सही है क्या गलत है
इसकी हमे पहचान नहीं,
कर्म पथ पे जो भी मिला
ये भी सही वो भी सही।
मान के विधाता की नीत
किया हमने स्वीकार है,
फिर क्या गलत क्या सही
इसकी हमे परवाह नहीं।
पैदा हुए जिसके लिये
वो कार्य भी तो अनिवार्य है,
भारत माँ की इस मिट्टी का कर्ज,
चुकाना भी तो अनिवार्य हैं।
ज़िंदगी का ये सफर
जन्म से शुरू हुआ
मौत पे रुक जाएगा
फिर क्या पता
क्या गलत क्या सही।
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