अजी निर्धनता का हल लेते आइयेगा,
सरकार से थोड़ा बल लेते आइएगा।
अम्मा पॉजिटिव हैं बेड नहीं मिल रहा,
समाजसेवियों से मदद लेते आइएगा।
अच्छा बच्चों की पूरी फ़ीस देनी हैं,
आप आधी वेतन ही लेते आइयेगा।
मजदूर औऱ प्राइवेट वालें ही मरेंगे,
कहीं से कुछ उधार लेते आइएगा।
बच्चों की उम्मीद न टूटने पाए हमसे,
मायूसी में भी मुस्कान लेते आइयेगा।
सुनिए आज राशन ख़त्म हो गया है,
हो सके तो ज़हर ही लेते आइयेगा।।
इनका ज़िम्मेदार कौन?-
हमारी कौम में गीदड़ के भेष में सब चीते हैं,
हमकों आदत है हम जिंदादिली से जीते है।
औऱ दर्द क्या है मत पूछों हम बतायेंगे नहीं,
हम चाय की चुस्कियों में सारे गम पीते हैं।।
©प्रिया 💕-
सुनों,मैंने सफ़र बहुत ही लाज़वाब जिया है,
गर मंजिल आये तो मेरी उम्र उसे लग जाये।
©प्रिया💕-
ढाल बनकर जो खड़ा उसे दीवार कहते हैं,
एकजुट रखना जाने उसे संस्कार कहते है।
चाहें जैसे हो हालात कभी ना छोड़ते साथ,
इस प्यारे से अनुबंध को परिवार कहते है।।
©प्रिया💕-
मेरा दिल हताश है तो हताश रहने देना,
किसी गैर के लिए मुझे काश रहने देना।
इस चेहरे की तबस्सुम का राज हो तुम,
बस खुद को मेरे आस पास रहने देना।।
©प्रिया❣️-
मेरा दिल मेरे इख़्तियार में नहीं था।
चाहे बग़ैर कैसे होता मेरा गुज़ारा।।
©प्रिया-
खुद को कब तक बहलाती क़ुर्बतों से तेरे,
मेरे जाने का सितम तुझे उठाना तो होगा।।
©प्रिया-
टूटे दिल को जैसे कोई मैय्यत मान लेना,
एतबार आये तो सब शिकायत मान लेना।
वो जानता है मेरे रूह की हालत तेरे बग़ैर,
हो सके तो खुदा के हर आयत मान लेना।।
©प्रिया-
तकलीफ भी हुई है और दिल भी रोया है,
हाँ अपने आँसूं पोंछकर खुद ही सोया है।
अब तो ब्रम्हा जी की भी न सुन सकूँगी मैं,
तूने मेरा प्यार जज़्बात कुछ ऐसा खोया है।।
©प्रिया ✍️-
एक इसी काम से ही तो मैं प्यार करती हूँ,
कलम उठाकर डायरी पर श्रंगार करती हूँ।
के जीती हूँ लिखती हूँ मुहब्ब्त के सारे पड़ाव,
है जो करार मेरा उसी को बेकरार करती हूँ।।
तेरा सुकून-