एक अर्से बाद आज फिर से कलम उठाया
शायद फिर शब्दों से सवाल होगा
जिन अल्फाज़ो से रूठ कर बैठे थे हम
उन्हीं अल्फाज़ो से हमे इस दफा इश्क़ कमाल होगा ❤-
इश्क़ हो और बर्बादी ना हो
ये तो बिल्कुल वैसे है जैसे
ज्वालामुखी फटे और तबाही ना हो-
एक तरफा इश्क़ का बस यही अंजाम है
एक जान देने को तैयार तो दूसरा बिल्कुल अंजान है
अकेली रातों में तुम्हे सोच यूही मुस्कुराते है
और जब भी बारिश हो तो आप बुंदो के साथ
हमसे मिलने चले आते है
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अपना गम सबसे छुपाते हैं
हालात चाहे जैसे हो बस यूँ ही मुस्कुराते है
जो पूछे कोई हाल हमारा
सब बढ़िया सबको यही बताते है
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राधा रंगी थी श्याम से
सिया रंगी थी राम से
वैसे ही तुम रंग जाना
महादेव की भांग से-
कुछ सोचु, कुछ लिखू, कुछ मिटा दू
जो दिल में है उसे दिल में रखू
या तुझे सब कुछ बता दू
कुछ कहु, चुप रहू या युही मुस्कुरा दू
मुझे इश्क़ है तुझसे ये कह दू
या ये राज सबसे छुपा लू
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उम्मीदों की बिंदी
ख्वाबो का काजल लगा लिया
और जब भी कहा किसी ने मुझे सवरने को
मैंने बस हल्का सा मुस्कुरा दिया-
आँखो में समंदर
सीने में सैलाब लिए बैठे हैं
और है कुछ वतन के रखवाले
जो दिल में पुरा हिंदुस्तान लिए बैठे हैं-
मेरी मोहब्बत सूरज थोड़ी है
जो शाम होते ही ढल जाए
और ये इश्क़ है मेरा मौसम थोड़ी है
जो वक़्त के साथ बदल जाए-