मेरा मन है
तुम्हारी महक को खुद से मिला सकूँ
इस ख़ामोशी को तुम्हारे साथ बाँट सकूँ
इस मजबूरी की डोर को ऐसे तोड़ दूँ,
कि, ये फिर से ना कभी जुड़ पाए
हर एक नहीं..कुछ एहसास तुम्हारे हैं
और हाँ जो तुम्हारे साथ सोचे हैं बस वही प्यारे हैं
एक उम्र होती है पर ये बिछड़ने की क्या है?
हर बात कह दी पर,
होंठो पे आने का वक़्त क्या है? मेरा मन है.....
तुम जहाँ हो,तुम्हारे साथ रह लूँ
जो दबा रखीं हैं इतने अरसे से,
वो सारी बात कह लूँ
कोई गुनगुनाए तो तुम क्यों याद आते हो?
कभी ये प्रश्न मन पर हावी हो जाता है और,
कभी मन प्रश्नों पर....
मेरा मन है.....
तुम ज़वाब दो,आखिर क्यों है ये सब?
कभी ख़त्म होगा?
लौट तो आती हैं लेहरें पर,
हर लहर सागर को छू पाती है क्या?
मैं किनारा हूँ या वो बदकिस्मत लहर
जो भी बनूँ....
मेरा मन है.....तुम मेरे साथ हो
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