priyanka singh   (Pc)
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Joined 3 April 2018


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Joined 3 April 2018
9 APR 2022 AT 10:52

आज कल हर कोई नाराज़ सा चल रहा हैl
मैं बेहोश हूँ या कोई ख़्वाब चल रहा हैll

हर दिन मुझसे सवाल पूछते हैंl
जाने ये कौन लोग हैं,
इनका मुझसे कौन सा हिसाब चल रहा हैll

कोई ग़ुस्ताखी हुई तो भूलजाएं l
माफ़ करें या मुझसे दूर जाएंll

ना देखिये अब इन आँखों में l
डूब जाओगे,
आज कल इनमें सैलाब चल रहा है ll

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30 DEC 2021 AT 0:59

मुझे अब जाना होगा फिर से लौट आने के लिए
करीब ही होंगे हम,बिछड़ेंगे तो बस ज़माने के लिए

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27 DEC 2021 AT 0:01

चाहती थी समंदर बनूँ..
रो लूँ चाहे जितना
पर ख़ुद से ही जा मिलूँ
ना बिखरूँ,ना समेट पाए कोई,
ना ठहर पाए मुझमें कोई,
पर ख़ुद में सारा आसमां भरूं
चाहती थी मैं समंदर बनूँ..
सूरज का प्रकाश लिए
राहगीर किसी की बनूँ
शीतलता का कोना लेकर
कोमलता को सहजे रखूँ
चाहती थी समंदर बनूँ...
मेरा खारापन भी काम आए
जब,
उसका सही रूप कोई जान जाए
मेरी ख़ामोशी सबको सुकून दे
चाँद की चाँदनी मुझे रूप दे
किसी मिट्टी को आकार दे सकूँ
पर किसी को बांधे ना रखूँ
चाहती थी मैं समंदर बनूँ...

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30 DEC 2021 AT 0:13

कभी कभी किसी का देर से आना भी अच्छा होता है
तुम देर से आए थे,ये बहाना भी अच्छा होता है

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26 DEC 2021 AT 23:43

कभी लगता तो है हाँ कि मैं वो फूलझड़ी जैसी हूँ जो,
जलने पर बहुत चमकती है जिसके पास होती है उसे बहुत ख़ुशी देती है और जब वो फूलझड़ी पूरी तरह अपनी रौशनी,अपनी चमक,अपनी चुलबुलाहट बिखेर देती है तब तक अच्छी लगती है l उसके बाद लोग उसे भूल जाते हैं और ऐसी जगह फेंक देते है जिससे कहीं वो पैर में ना पड़ जाए l

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29 OCT 2021 AT 16:24

ज़रा काम कीजिए ख़ुद पर आप,
ये झूठी परवाह ठीक नहीं ll
मुझे एक नया झूठ पसंद आएगा
ये पुराने तौर तारीके ठीक नहीं ll

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28 OCT 2021 AT 21:44

मेरा मन है
तुम्हारी महक को खुद से मिला सकूँ
इस ख़ामोशी को तुम्हारे साथ बाँट सकूँ
इस मजबूरी की डोर को ऐसे तोड़ दूँ,
कि, ये फिर से ना कभी जुड़ पाए
हर एक नहीं..कुछ एहसास तुम्हारे हैं
और हाँ जो तुम्हारे साथ सोचे हैं बस वही प्यारे हैं
एक उम्र होती है पर ये बिछड़ने की क्या है?
हर बात कह दी पर,
होंठो पे आने का वक़्त क्या है? मेरा मन है.....
तुम जहाँ हो,तुम्हारे साथ रह लूँ
जो दबा रखीं हैं इतने अरसे से,
वो सारी बात कह लूँ
कोई गुनगुनाए तो तुम क्यों याद आते हो?
कभी ये प्रश्न मन पर हावी हो जाता है और,
कभी मन प्रश्नों पर....
मेरा मन है.....
तुम ज़वाब दो,आखिर क्यों है ये सब?
कभी ख़त्म होगा?
लौट तो आती हैं लेहरें पर,
हर लहर सागर को छू पाती है क्या?
मैं किनारा हूँ या वो बदकिस्मत लहर
जो भी बनूँ....
मेरा मन है.....तुम मेरे साथ हो





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31 AUG 2021 AT 13:09

मत बन समझदार तू,ये बेपरवाही ही ठीक है
ना पूछा कर तू सवाल ऐसे,
ये ख़ामोशी की अदाकारी ही ठीक है

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24 AUG 2021 AT 11:13

किसी और के किरदार को देखकर अपना किरदार मत बदलो

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19 AUG 2021 AT 18:16

किसी का कुछ भरोसा नहीं कौन कब बदल जाए
जिसके लिए जीते थे क़त्ल वो कब कर जाए
कभी पूजता है किसी को कोई,कब उसकी कद्र घट जाए
कभी सुनता था वो सबकी ना जाने कब अनसुना कर जाए
प्यार उड़ कर उस दिल में नफरत भर जाए
किसी का कुछ भरोसा नहीं कौन कब बदल जाए

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