Priyanka Shukla   (©अभिव्यक्ति)
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Joined 11 July 2017


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Joined 11 July 2017
25 MAR 2022 AT 12:21

कौन चाहता है उस आलिंगन को भूलना
जिसमें थी, एक अलौकिक शक्ति
जीवन के हर दुःख से पार पाने की..
जिसमें मिलने वाला सुकून
कहीं और पाया नहीं जा सकता था
अपना सब कुछ लुटा कर भी
जो यूँ ही नहीं मिल सकता था..
कौन भूलना चाहता है..
एक जोड़ी प्रेमाभाव से भरी
उन आंखों को
जो उस रात उस चेहरे से
हटती ही न थीं..
जिनसे बचने को,
कहीं शरण न मिली
उस लज्जाशील मुख को भी
सिवाय अपने प्रेमी के वक्षस्थल के..
कभी भुलाई नहीं जा सकती वो घड़ी
जिसमें मुक्त हो गईं
न जाने कितनी प्रतीक्षाएँ,
न जाने कितने अवसाद..
कौन चुका पायेगा मूल्य उस मौन प्रणय का
जिसमें दुनिया से ऊबे दो प्रेमियों न
चूम लिए थे
एक दूसरे के सारे दुःख, सारे भय..
शायद इसीलिए..
प्रेम से उपजी पीड़ा
दुनिया के सारे प्रेमियों के लिए
ईश्वर का दिया सबसे बड़ा अभिशाप है..।— % &

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28 FEB 2022 AT 12:44

तितलियों की भाँति इतराती,उड़ती,फिरती लड़कियों के पर इस सभ्य समाज के ढाँचे में कब धीरे-धीरे कतर जाते हैं ये बात वे खुद समझ नहीं पातीं,बस तब छटपटाती हैं जब उन्हें ये अहसास होता है कि वो तितलियां तो हैं,किंतु बग़ैर परों की।— % &

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9 MAR 2019 AT 11:18

जानती हूँ वो चाहता है मुझे
मगर कब तक..ये एक पहेली है।।

वस्ल की शब तो चैन से गुज़री
हिज्र की सुब्ह..मेरी सहेली है।।

बसना हो गर तो आके बस जाओ
मेरी दुनिया.. बहुत अकेली है।।

वो तस्वीर बहुत अज़ीज़ है मुझे
हाथ में तेरे..मेरी हथेली है।।

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10 JAN 2022 AT 2:12

प्रेम कभी अकेला नहीं आता..
वह सदैव लाता है अपने साथ,
चुटकी भर मुस्कुराहटें,
मुट्ठी भर आँसू,
दामन भर प्रिय से बिछोह के भय की पीड़ा
और जीवन भर की व्यथा..।

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20 DEC 2021 AT 12:38

किसी से दूर जाया जा रहा है
किसी से दिल लगाया जा रहा है।

न जाने किसका मन रखने की ख़ातिर
किसी का दिल दुखाया जा रहा है।

इधर रुस्वा हुआ जाता है कोई
उधर रूठा-मनाया जा रहा है।

किसी की आँख में सजते हैं आँसू
किसी का घर सजाया जा रहा है।

कोई तस्वीर घर में लग रही है
किसी का ख़त जलाया जा रहा है।

जो था अपना कभी सबसे ज़ियादा
वो गैरों में गिनाया जा रहा है।

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12 OCT 2021 AT 12:25

'ये अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो..'

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9 OCT 2021 AT 15:32

वक़्त के साथ, ये इल्म हुआ है हमको
जो अपना सा लगा,अपना नहीं था..

वो एक कमज़ोर लम्हा था कि जिसमें
कहा सब कुछ ,मगर कहना नहीं था..

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3 SEP 2021 AT 11:32

जिस गली जा रहे, उससे अनजान हैं।
छूटती है जो पीछे, मेरी जान है।।

कुछ नए लोग हैं, एक नई ज़िंदगी
एक किस्सा नया, एक कहानी नई
किन्तु छूटेगा जो,वो है हिस्सा मेरा
मेरा सब कुछ है वो,मेरी पहचान है

ये मेरा घर,मेरी हसरतों का शहर
थाम उंगली पिता की, चले वो डगर
दिल की दौलत लगा जैसे लुटती है अब
जब किसी ने कहा-अब तू मेहमान है।

छूटती है जो पीछे, मेरी जान है।
जिस गली जा रहे, उससे अनजान हैं।।

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25 AUG 2021 AT 21:20

मैंने अपना लिया है उनको हमसफ़र की तरह,
अब किसी ग़म से मुझे कोई शिक़ायत न रही।

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17 JUL 2021 AT 12:02

ऊपर-ऊपर हँसने वाले,भीतर-भीतर टूटे थे
जितने ख़्वाब सजाये हमने,आख़िर में सब टूटे थे।

कहते थे नाशाद रहेंगे,इक-दूजे से बिछड़ के जानाँ
आज अलग हैं खुश हैं देखो,हम दोनों ही झूठे थे।

सारी-सारी रात मनाया, दुलराया, मनुहारें कीं
एक ज़रा सी बात पे उस दिन,जब तुम हमसे रूठे थे।

रोते-रोते हँस पड़ते थे,अक्सर बातों-बातों में
उसका होना ऐसा था, और उसके ढंग अनूठे थे।

छुप-छुप कर हम मिले जहाँ ,एक अदद बोसे की ख़ातिर
वो रस्ते,गलियां,चौबारे आख़िर में सब छूटे थे ।

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