कभी कभी सब कुछ बहुत उलझा सा लगता है
गर रिश्ता सच्चा है तो इतना पराया क्यूँ लगता है
एक खामोशी है जो कहीं बहुत शोर कर रही है
जुबाँ चुप है पर धड़कन बहुत कुछ कह रही है
ऐसा लगता है जैसे सब कुछ एक सपना सा था
पीछे जो वक्त बीता सब एक मेरा वहम ही था
मेरी हँसी मेरा बचपना सब आँसुओं में मेरे बह रहा है
मेरे सपनों का हाथ मुझसे रेत की तरहा फिसल रहा है
अब तो हाल ए दिल लिखने के लिये भीे लफ्ज नहीं मिल रहे
मुझे समझने वाले और गले से लगाने वाले
वो भगवान् के भेजे फरिश्ते मुझे ही क्यों नहीं मिल रहे ....
Priyanka shukla pS
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