"Reflecting on a past filled with hard work, ambition, confidence, and joy can be disheartening when contrasted with a present consumed by hopelessness, lack of interest, failed relationships, and a mediocre existence."
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सारी शिकायतें एक-एक करके लिखवा दो
जो जिंदगी बच जाए तो,
आखिर में इश्क लिखवा देना।
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शायद मुझे गुस्सा ज्यादा आता है
क्योंकि मैं हर चीज़ में बदलाव चाहती हूं।
हर वो चीज़ जो मर्यादा के अनुरूप न हो।
हर वो चीज़ जिससे व्यक्ति के संघर्ष का
तिरस्कार हो!
अपने गुस्से में
मैं अक्सर ये भूल जाती हूं कि
मैंने इस दुनिया का निर्माण नहीं किया है।
और शायद इसलिए मेरा
इस पर अधिकार भी नहीं है।
एक गिलहरी जो नीम के पेड़ पर
रहती है हमेशा से,
उसने भी नीम के पेड़ का निर्माण नहीं किया
तो क्या उसे नीम के पेड़ को काटने वालों
पर गुस्सा करने का अधिकार नहीं?
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Sometimes there is so much chaos around you that no matter how hard you are trying to maintain your mental peace and avoid conflicts, you get into that toxicity and get affected mentally and emotionally.
I repeat, no matter how hard you try to stay away from those kind of people around you, you will be dragged into such situations just because you exist. And perhaps that's because people often mistaken your decent existence as a sign of softness (weakness to be more precise). And when you finally shed your decency, these people become normal but that costs you a lot of regret and emotional vulnerability.
This has been an experience that I haven't ever regretted for remaining silent or speaking less whereas it has cost me a lot emotionally for raising my tone. But what to do, deafs don't hear it softly!-
कायरता किसमें निहित है?
परिभाषा क्या वीरता की?
स्वयं को प्राथमिकता दूं मैं
मानूं जो मन में है
करूं अनुसार अपने चित्त की।
या लडूं 'पर' युद्ध
छद्म प्रशंसा हेतु
आवश्यकता क्या है
आखिर इस अधीरता की?-
पता है यार, कभी-कभी न हमारा बहुत मन करता है बात करने का। किसी पुराने, किसी अच्छे दोस्त से। पर न, ये काम बहुत मुश्किल हो जाता है। खासकर जब हम आमतौर पर बातूनी न हो तब। यूँ ही अचानक से किसी दोस्त को परेशान करना, कि यार मेरा बात करने को दिल कर रहा है, पर बात करने को कुछ है भी नहीं! ऐसे में क्या करना चाहिए? मुझे आज तक नहीं समझ आया!
अचानक से किसी को ढेर सारे, बिन मतलब के मेसेज कर दो, तो भी डर कि क्या सोचेगा सामने वाला व्यक्ति? कहीं बिजी न हो पढाई में? इंसेंसिबल न समझ ले? और सबसे बड़ा डर, इग्नोर न कर दे! मुझे तो लगता बहुत लकी होते वो लोग जिनके पास ऐसी सिचुएशन में बात करने को होता कोई, जो थोड़ा सेंसिटिव तरीके से ये सब समझ ले।
वो क्या है न, कभी-कभी हमारा मन हमारे दिमाग से बहुत तेज़ चलता है। और ये वही टाईम होता जब हम बिना सोचे समझे बात करने की कोशिश करते भी हैं... पर समझदार दोस्त हमें ये एहसास दिला देते की हम इंसेंसिबल ही बिहेव कर रहे (या शायद वो इंसेंसिटिव)!!-
मुझे खालीपन पसन्द है। मन, जीवन, जज़्बात, रिश्तों, और भी कई जगह। यहाँ सबकुछ भरा पूरा हो तो चिढ़-सी होने लगती है। खालीपन बड़ा ही आकर्षक लगता है मुझे। शांत और एकल, बिल्कुल मेरी तरह! जहाँ लोग सिर्फ़ गहन विचार करने के लिए रुकते हैं। खालीपन के साथ थोड़ा समय बिताकर, थोड़ा विचार-विमर्श कर वो चले जाते हैं अपनी पूर्णता की और। लेकिन मैं वहीं, उसी खालीपन में जीवन व्यतीत कर देती हूँ।
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मुझे खालीपन पसन्द है। मन, जीवन, जज़्बात, रिश्तों, और भी कई जगह। यहाँ सबकुछ भरा पूरा हो तो चिढ़-सी होने लगती है। खालीपन बड़ा ही आकर्षक लगता है मुझे। शांत और एकल, बिल्कुल मेरी तरह! जहाँ लोग सिर्फ़ गहन विचार करने के लिए रुकते हैं। खालीपन के साथ थोड़ा समय बिताकर, थोड़ा विचार-विमर्श कर वो चले जाते हैं अपनी पूर्णता की और। लेकिन मैं वहीं, उसी खालीपन में जीवन व्यतीत कर देती हूँ।
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