आज के दिन हमें आजादी मिली थी?
मिली नहीं वो आजादी हमने पाई थी,
देश के वीर जवानों ने ये आजादी कमाई थी।
गुलामी की बेड़ियों ने सोने की चिड़िया को जकड़ा था..
न जाने कितने बेटों ने अपनी मां का दामन छोड़ भारत मां के आंचल को पकड़ा था,
आजादी का सवेरा देखने को उनका मन्न बेकरार था,
बस यही जुनून और देशभक्ति का नशा मानो सब पर सवार था।
मंगल पांडे की कारतूस की लड़ाई ने गोरी सरकार को हिलाया था,
देश के इस लाल ने मौत को भी चूमकर अपने गले से लगाया था।
बिस्मिल - आजाद की यारी अंग्रेजी शासन पर पड़ी भारी थी,
हर देशवासी के भीतर क्रांति पैदा करने की, की इन्होंने जो तैयारी थी।
भगत सिंह का तो कुछ अंदाज ही निराला था,
हर समय इनकी जुबां पर बस्ता सिर्फ इंकलाब का नारा था,
आजादी को अपनी दुल्हन बनाया था,
जमाने से इन्होंने शहीद - ये - आजम का किताब पाया था।
इन सब वीरों में शामिल एक और कहानी थी,
कैसे भूल जाए वो झांसी वाली रानी भी कितनी मर्दानी थीं।
इस दिन के सपने इनकी आंखो ने संजोए थे,
मत भूलना कभी सिर्फ इस दिन को पाने के लिए इन्होंने अपने प्राण खोए थे।
देश के लिए कुर्बान हुई ऐसी हजारों जवानी है,
सिर्फ तारीखों पर याद की जाए नहीं ये वो कहानी है।
ये आजादी ये समां इन क्रांतिकारियों का दिया हुआ उपहार है,
और ये एआजादी किसिकी शहादत से आज भी बरकरार है।।
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