Priyanka Mishra   (Priyanka Mishra)
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Joined 15 August 2019


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Joined 15 August 2019
3 JUL AT 22:39

दिल में इतनी तो जगह दीजिए,
हम रूठें और आप हमें मना लीजिए,

यूँ ना हमसे नज़रों को फेरा कीजिए,
आपकी हूँ ये बात अपने दिल को बता दीजिए,

जो है आरज़ू आपके दिल में वो बयाँ कीजिए।
हम रूठें और आप हमें मना लीजिए ।।

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20 JUN AT 22:51

दिन के उजाले में रास्तों की भीड़ में हर तरफ़ शोर है,
सत्य किसी को दिखता नहीं दिल में सबके जोश है,
दिलों में अँधेरे को स्थान दिए नहीं जीवन में किसी के भोर है।
ये रात क्यों खामोश है।।

गलियों से गुजरते देखा लोगों के हृदय में चिंताओं का बोझ है,
किसी के जीवन में ख़ुशी तो कोई ग़म से कमजोर है।
ये रात क्यों खामोश है।।

दिन तो कट जाता है कटती नहीं ये रात है,
होश तो संभाला सबके सामने मैंने,
पर आंसुओं से भीगी हर रात है।
ये रात क्यों खामोश है ।।

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19 JUN AT 9:50

जख़्म दिए जब उसने तो मरहम बना वो ही,
क़त्ल मेरा उसने किया तो मेरा क़ातिल भी वो ही,

ज़र्रा ज़र्रा है गवाह उसके गुनाह का,
मेरा हाँथ थामा तो उसने ही था और छोड़ा भी उसने ही।

किस पर इल्ज़ाम लगायें हम बेवफ़ाई का,
वफ़ादार तो वो ही था बेवफ़ा भी निकला वो ही,
क़त्ल मेरा उसने किया तो मेरा क़ातिल भी वो ही।

आँसुओं से भीगी रातें तो सुबह की मुस्कुराहट वो ही,
हर ख़ुशी मेरी उसी से ,हर दुख का मेरे कारण भी वो ही।।

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18 JUN AT 18:42

Writing is the only way because writing gives form to the feeling of the mine..

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1 JUN AT 8:47

जब तुम बनके आए मेरा सहारा,
मुझे हर मुश्किलों से उबारा,
तब तब मेरे दिल ने तुम्हें पुकारा।

खट्टे मीठे पल जो साथ तुम्हारे गुजारा,
नोक झोंक का मजा भी तुम्हारे साथ खूब लिया,
तुमसे लड़ते हुए भी ऐ हमसफ़र तुम्हें दिल में उतारा,
तब तब मेरे दिल ने तुम्हें पुकारा।

भीगे आसुओं से मन को जब तुमने हँसाया,
हर परिस्थिति में तुमने ही मेरा मान बढ़ाया,
तब तब मेरे दिल ने तुम्हें पुकारा ।।

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1 JUN AT 8:37

Sunday morning is the day to present ourselves in a better way where we can think about how to do better in the coming weeks..

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29 APR AT 14:42

तुम हो मेरा सब कुछ सर्वस्व ही हो
फिर आईने में तुमको कोई और क्यों दिखता है,

मेरे अंदर की छटपटाहट क्या तुम्हें महसूस नहीं होती
वर्षों पहले जोड़ा गया रिश्ता इतना कमजोर क्यों दिखता है,

समझती हीं रही तुम्हें और तुम्हारे जज्बातों को
फिर हर जगह पैसा ही क्यों बिकता है,

धोखा देते ही रहे तुम मुझे हमेशा
फिर सारी मर्यादाओं का भार मुझपे ही क्यों टिकता है,

भरता ही जा रहा दिल मेरा अवसादों से
मेरी मुस्कुराहट के पीछे का दर्द क्यों नहीं दिखता है,

जानती हूँ की अकेली ही थी और जीना अकेले है
फिर सत्य इतना कड़वा क्यों लगता है,

हर जगह रिश्ते निभाने का बोझ मुझ पर ही क्यों
तुम्हें सब कुछ छोड़ना इतना आसान क्यों लगता है,

तुम्हारे ही लिए तो जीती हूँ
फिर आईने में तुमको कोई और क्यों दिखता है।।

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29 APR AT 9:18

तुमसे मिलकर खो गई मासूमियत हमारी,
जान ना ले ले कहीं ये आशिक़ी तुम्हारी,

निः स्वार्थ प्रेम ही है वसीयत हमारी,
उड़ते परिंदे से तुम और आवारगी तुम्हारी।

की दरवाज़े पर तुम्हारी राह देखती नज़र हमारी,
जान ना ले ले कहीं ये आशिक़ी तुम्हारी।।

तुम हो मेरी लकीरों में बन गए हो क़िस्मत हमारी,
की चलती ही जा रहीं हूँ राहों में तुम्हारी।
जान ना ले ले कहीं ये आशिक़ी तुम्हारी ।।

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29 APR AT 2:01

उदास थी मैं एक कोने में पड़ी थी
वहीं मेरी परछाई जैसे मुझसे सवाल करती,

पूछती मेरी उदासी का निज कारण
और मैं फिर आंसुओं को पोछकर कहती ,
कुछ तो नहीं हुआ मैं जरा आईने में देख कर चेहरा आती हूँ,

वो कोना जो हंस रहा था मेरे झूठ पर
क्योंकि वो ईंट और सीमेंट से बने कोने ने सहारा जो दिया था,
साक्षी था वो कोना घर का मेरी उदासी का,

जान गई थी मेरी परछाई और घर का हर कोना
की मुस्कुराते हुए चेहरे में दर्द को पहचानती वो परछाई,
और मेरे घर का हर कोना।।

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29 APR AT 1:47

तुम्हारी आँखों की “कशिश “खींच लाती है तुम्हारी ओर ।

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