PRIYANKA MATHUR   (Priyanka_Mathur)
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Joined 15 October 2020


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Joined 15 October 2020
28 MAR AT 9:53

नई सुबह की नई उमंग में
स्ट्रेस (stress) वही पुराना है,
चाहे बदल गया हो स्टेटस
खुशी का एड्रेस वही पुराना है,
ना चाहकर भी रोज़ गम
से दो चार होते है
फिर भी लबों का
मुस्कुराना वही पुराना है,
उम्र की गिनती चाहे
छू ले फलक को
दिल का जमीं से रिश्ता
अभी भी वही पुराना है।

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21 MAR AT 9:36

सिर्फ पेड़ नहीं ये प्राण हैं
वायु इनकी जीवन दान है,
धरा के ये ही सुंदर श्रृंगार हैं
प्रकृति का अमोल उपहार हैं,
बिन तरु बता...मनु
तू क्या कर पाएगा ?
जब देह का पौधा मुरझाएगा
घट जायेंगे सब नदी और ताल
ये जीव पखेरूं उड़ जायेगा,
तू कैसे मेघा को बुलाएगा
कैसे खेतों में अन्न लहलाएगा,
ना सीचा जब तूने पेड़ो को
क्या अगली पीढ़ी को खिलाएगा,
बात लंबी नहीं है छोटी ही है
हम दोनो की जननी मिट्ठी ही है,
क्या काटकर गला भाई का
मां के आंचल में छुप पाएगा,
बिन तरु बता मनु
तू क्या कर पाएगा...?

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18 MAR AT 20:25

ना पूछो तुम हाल
दिल का कि किस तरह
मैं इसको बहलाता हूं
कागज़ कलम पाता हूं जब तक
ख्याल भूल जाता हूं,
एक ज़माने में किताबों
से गहरी दोस्ती थी
अब तो जवाब ढूंढते ढूंढते
मैं अक्सर सवाल भूल जाता हूं,
उन्हें गिला है सुमार नहीं
ग़ज़ल में ज़िक्र उनका
कोई ख़बर करे उन्हें कि
मैं आजकल अपना ही
नाम भूल जाता हूं,
ना बरतो बेरुखी मुझसे
तुम ज़माने वालो मैं
काम दिल से करता हूं
बेशक आराम भूल जाता हूं,
गुमान में नहीं कश्मकश
मैं हूं इतना, कि बीच उलझनों
के अपने अरमान भूल जाता हूं
बनाए थे मैंने में भी
कुछ उसूल जीने के पर
अब हालात ये है कि मैं
जिंदगी का फरमान
भूल जाता हूं।

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19 FEB AT 21:34

डूबने लगता हूं तो हबाब लगती है
जाता हूं छूने तो अज़ाब लगती है,
मुस्कुराता हूं जब भी मैं मुझे जिंदगी ख़्वाब लगती है
लाख कांटे है दरमियां हमारे फिर भी देखता हूं जब भी उसे ये जिंदगी महकता गुलाब लगती है।

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8 FEB AT 22:04

आज चांद को देखा तो
उसका ख्याल आया,
फ़िर ढूंढी तस्वीर उसकी
और किस्मत पर मलाल आया,
क्या ख़ूब थे दिन वो
उफ़ कितनी हसीं रातें थी,
किसको ख़बर थी हिज़्र की
होती रोज़ मुलाकातें थी,
पर देखते ही देखते दिन
अपने यूं पलटते गए
ना चाहकर भी हम वक्त की
बंदिशों में सिमटते गए,
अब तो रु-ब-रू होने का
तस्सवुर ही एक बहाना है
गीत ये अधूरा जिंदगी भर
अकेले ही गुनगुनाना है।

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4 FEB AT 22:06

ख्यालों के उमड़ते मेघों के
कपोलो पर रड़कने से पहले,
हमनें उतार दिया शोलों को सफ़्हे पर
आँखों में भड़कने से पहले।

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17 DEC 2023 AT 22:12

हरी नाम सा पराग ना जग में
है भक्ति सम कोई संपत्ति नाहीं,
करें भजन जो, सो हरी मिले
भली काऊ मनु की संगति नाहीं।

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6 OCT 2023 AT 11:07

आँखों में शोखियां रुख पर रूआब था
लहज़े में नरमी थी होठों पर आदाब था,
कैसे देता गुल कोई मैं उस गुलदबदन को
जो ख़ुद में एक चलता फिरता गुलाब था।

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31 AUG 2023 AT 21:53

गिराकर अलकों को आरिज़ पर
अक्सर ही वो मिरे दिल को थाम देती है,
मेरी सारी उलझने गुम हो जाती हैं जब
वो लपेटकर जुल्फों को जुड़ा बांध लेती है।

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13 JUN 2023 AT 8:34

कुछ तो खौफ खा ऐ ज़िंदगी
और कितना मुझको तड़पाएगी
एक दिन तेरी करनी तुझ पर बरपेगी,
जिस दिन सदायें मेरी आसमां से टकराएंगी।

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