मेरा बस चले तो मैं
आकाश की दहलीज पर बनी
इन्द्रधनुष की अल्पना बनूँ
मैं बनूँ सखी उर्मिला की
चाँद को देखकर खिल जाने वाला
चकोर बनूँ
मेरा बस चले तो मैं ....
To be continue....-
ज्येष्ठ की अलसायी दोपहर - सी हो गई है ज़िंदगी
नीरसता ,व्याकुलता , खालीपन के हथौड़े
तोड़ रहे हैं अरमानों को ॥-
अँधेरे बंद कमरें में सुबकती सिसकियाँ
अक्सर दम तोड़ देती हैं किसी की आहट न पाकर ॥-
अभी-अभी मैंने एक गीत रचा है तुमको मैंने प्रीत रचा है ।
अभी-अभी उम्मीदें सब सिमटकर हाथ बन जाने को मचली हैं
अभी-अभी मेरे कमरे के सन्नाटे ने तोड़ी जैसे अँगड़ाई है ।
अभी-अभी सुबह और शाम को साधे जैसे एक दोपहर आई है।
अभी अचानक से मुझको याद तुम्हारी आई है ॥
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मुझे न पता था
क्या चाहा था मैंने
न चाहा था तुझको
न खुद को ही चाहा था मैंने
फिर भी मिली मुझको दोजख व जन्नत
मगर फ़र्क क्या था - सोचा तो जाना
नज़ारा न था वो - नज़र आ रहा जो
अब इस सफ़र में कोई दरख़्त मिले
या किसी का घर आए
मैं थक गयी हूँ कही तो छाँव नज़र आए ॥-
हर रिश्ते की एक उम्र होती हैं ....
एक उम्र के बाद दिखने लग जाती है
झुर्रियाँ उसके हर हिस्से पर,
नज़र आने लग जाती है थकावट उसे ढोने की ॥-
उन्मुक्त गगन में विचरती नन्ही - सी चिड़िया
जब आ बैठी आँगन में मेरे
त्वरित बिजली के वेग - सा
आ चला सवाल ज़हन में मेरे
विस्तृत फलक से परे
क्या चाहती है वह एक छोटा - सा बसेरा ॥-
कुछ संबंधो को सींचा नहीं जाता है।
प्रतिदिन की बातों से ,
ना ही डाली जाती हैं ,
उनमें खाद मुलाकातों की ।
वो यूँ ही हरे -भरे रहते हैं
अपनी हसीन यादों से ॥-