Priyanka Jain   (प्रियंकाभिलाषी)
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Wanderer, Creative Soul
Joined 22 January 2017


Wanderer, Creative Soul
Joined 22 January 2017
30 MAR AT 23:07

तुमसे मिलने के बाद!

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18 MAR AT 19:06

तुझसे!

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26 JAN AT 19:50

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"प्यारे साहेब,

कुछ लोगों का ज़िन्दगी में होना 'सुकूँ का पर्याय' होता है..

जैसे ओस की तह से मन का भीगना..
जैसे साँझ की बेला पर दीपक की लौ..
जैसे नदिया की कलकल से शिराओं में हलचल..
जैसे सितारों की ओट में चंपा से निहारता चंद्रमा..
जैसे सीरे की सौंधी सुगंध से मंद-मंद मुस्कुराहट..
जैसे प्रियजन के संदेश से नयनों का भीगना..
जैसे मुलायम दूब पर बिखरे हरसिंगार..
जैसे शांत चित्त में महकता उल्लास..

क्या-क्या लिखूँ?? किस-किससे आपके लिए उपमाएँ लाऊँ? कहाँ-कहाँ से बिम्बों के प्रकाश का छिड़काव करूँ??

कहिए साहेब, किस स्याही से मापें अन्तर्मन की सुरम्य यात्रा..

इस प्रेममयी अनुभूति का संदर्भ प्रत्येक चरण में घूँट-घूँट निहारता आपका अस्तित्व और आप निच्छल भाव से सींचते अपने हितैषीजन.. क्या अद्भुत अजोड़ सेतु होगा.. है ना, साहेब!

आप यूँ भी सब जानते हैं क्योंकि आप केंद्रीय पात्र हैं हर उस छोर के, जिससे पवन चक्की अनंत ऊर्जा का संचार करती हुई निरंतर स्नेह लुटाती अपना वेग संभाले रखती है.. 😍

लफ्ज़ों से यारी यूँ ही निभाती रहें मेरी रातें और उनके जाम.."
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9 DEC 2023 AT 22:25

साथ यूँ ही चलती है..
कभी हँसती.. कभी मुस्कुराती..
रूप नए रचती है..

ज़िन्दगी है, साहब, ज़िन्दगी..
सुनो किस्से, बैठ सिरहाने..
हर शै को फबती है..

तू ही इक सितमगर..
हो चाहे जो, सनम..
तू रुख नहीं बदलती है..!!

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7 DEC 2023 AT 16:16

जबसे उनका होना 'रास' आ गया..

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5 DEC 2023 AT 16:41

रंगत जिसकी घुलनी है..
कभी फिज़ाओं में..
कभी निगाहों में..

बैठ दरिया किनारे..
बाँध लिहाफ पुराने..
कभी अश्क़ों से..
कभी छुअन से..
जिस्मों के चूल्हों पर..
आस फिर पकनी है..!!

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4 DEC 2023 AT 22:19

...

"इक अरसे से सिमटा था लम्हा..
इक तेरे आने से क़रार आया..!!"

...

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3 DEC 2023 AT 10:29

साहस का आसमान बाकी है..

असंभव अपरिहार्य कुछ नहीं..
धैर्य रणनीति का बाण बाकी है..!!

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2 DEC 2023 AT 9:44

आशा की ओर जाने में..
प्रेम की परिभाषा समझने में..
उदारता पहनने में..
संतुष्टि की माला गिनने में..
सामंजस्य बिठाने में..
मित्रता का सार जीने में..
प्रभु स्मरण करने में..

सो,
परिश्रम करते रहें!

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25 NOV 2023 AT 13:33

'Understanding' What is Yours.

'Accepting' the Fact -
"Not Everything Everyone is Yours!""

'Letting' Go Off..
'What is Not' Yours!

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