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"प्यारे साहेब,
कुछ लोगों का ज़िन्दगी में होना 'सुकूँ का पर्याय' होता है..
जैसे ओस की तह से मन का भीगना..
जैसे साँझ की बेला पर दीपक की लौ..
जैसे नदिया की कलकल से शिराओं में हलचल..
जैसे सितारों की ओट में चंपा से निहारता चंद्रमा..
जैसे सीरे की सौंधी सुगंध से मंद-मंद मुस्कुराहट..
जैसे प्रियजन के संदेश से नयनों का भीगना..
जैसे मुलायम दूब पर बिखरे हरसिंगार..
जैसे शांत चित्त में महकता उल्लास..
क्या-क्या लिखूँ?? किस-किससे आपके लिए उपमाएँ लाऊँ? कहाँ-कहाँ से बिम्बों के प्रकाश का छिड़काव करूँ??
कहिए साहेब, किस स्याही से मापें अन्तर्मन की सुरम्य यात्रा..
इस प्रेममयी अनुभूति का संदर्भ प्रत्येक चरण में घूँट-घूँट निहारता आपका अस्तित्व और आप निच्छल भाव से सींचते अपने हितैषीजन.. क्या अद्भुत अजोड़ सेतु होगा.. है ना, साहेब!
आप यूँ भी सब जानते हैं क्योंकि आप केंद्रीय पात्र हैं हर उस छोर के, जिससे पवन चक्की अनंत ऊर्जा का संचार करती हुई निरंतर स्नेह लुटाती अपना वेग संभाले रखती है.. 😍
लफ्ज़ों से यारी यूँ ही निभाती रहें मेरी रातें और उनके जाम.."
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