Priyanka Dixit   (Paridhi Dixit)
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born on 17 August,writing kept me alive
Joined 31 December 2017


born on 17 August,writing kept me alive
Joined 31 December 2017
24 MAR 2023 AT 12:46

Nothing can be more hurtful than bng dissighted, nothing can be more painful than bng ignored yet bng acknowledged...you just rely on someone else's eye when you will be cherished or when you will be knocked off..when you will be partnerd or when deserted based on their mood needs and priorities..its an existential crisis that hungs deep down your throat sliting through your heart or may be sewing its pieces..in both the cases substantial torment exists

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10 NOV 2022 AT 22:25

जब ख़ुद पर ही अभिमान रहें और शब्दों का ना ज्ञान रहे।
ये गुमां भी पल में जाता हैं अपनो का मन भर जाता है।।
दो पल में रिश्ते खोते हैं अपने भी तब जब रोते हैं
बातों में अपनापन ना दिखे, बस "मै ही हुं" ये ध्यान रहे।
इस आडंबरता भरे जीवन में, सीरत की भी पहचान ना रहे।।
जब ख़ुद पर ही अभिमान रहें और शब्दों का ना ज्ञान रहे।

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9 NOV 2022 AT 21:18

फलसफा इश्क का, करके यूं कुछ बयां, गैर कर वो गया त्याग कर हर हया।।
यूं तबाह करने के रास्ते थे बहुत, उसने था पर चुना इश्क हो दरमियान
मैं भी पागल सी थी, समझी ना छल है ये
वो तो तूफान सा था, समझी मैं,आशियां।।
उसको था कुछ गुमान, साथ चलता था जो,कहता समझो इसे मेरी दरियादिली।।
साथ रहता हूं जो,है यह एहसा मेरा, तुमको मालूम नही तुम में क्या हैं कमी,
यूं खफा होने की, थी वजहें बहुत, ना वो मेरा हुआ ना मैं उससे मिली।।


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27 OCT 2022 AT 11:03

जब दूसरे की थाली का घी आपको ज्यादा चमकता हुआ दिखने लगे, तो समझ लीजिए आपकी थाली का खाना गिरने को हैं।।।

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15 OCT 2022 AT 12:52

थोड़ा रुकी हूं मैं, पर थमी नहीं,
कुछ शिथिल हुई, पर जमी नही।
ये रस्ते जो पथरीले से, इनपे कांटो की कमी नहीं।।
मैं त्वरण से माप निकालूंगी, हौसलों, पे बल भी डालूंगी
जब ज़ोर मेरा कुछ कम होगा,
घर्षण को फिर अपनालूंगी।।
भूगोल मेरे इस जीवन का, ना जाने क्या क्षण लाएगा।।
ये दौर मेरा कुछ भारी हैं, पर मात मुझ ही से खायेगा।।।

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3 SEP 2022 AT 10:05

केतली में रखी चाय ठंडी हुई, ऐसी चुप्पी चली बात मंदी हुई।। मौन का ताला ऐसा लगा दरमियां, मन की बातों को मन में दबोचे चले, हैं मुनासिब नही बोलना कुछ यहां, खुदी पे खुद की खुद से पाबंदी हुई।।

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21 AUG 2022 AT 9:43

जब हुआ कन्यादान, ख़ाली कर वो मक़ान, उसकी डोली उठी वो सुहागन बनी।।
करके रस्में अदा, घर से होके विदा
उसका स्वागत हुआ एक नए अंगने में, करने को फिर गुलिस्तां
ज्यों पड़े थे कदम, कुछ गई वो सेहम
सबने हसकर कहा, है तुम्हारा यह घर, संजोना प्यार से, सब तुम्हारे है अब, बैठी संकुचित सी थी, दम सा घुटने लगा, हाथ जैसे उठा घूंघट की तरफ,
सबने फिर से कहा कैद रखो ये चेहरा घूंघट में ही तुम, पल्लू की ओट से उसने देखा था सब
कहा सिमटी रहो, कुछ तो लज्जा रखो।।
अब तुम बेटी नही, हो बहु तुम बनी।।बात मर्यादा - इज्जत पे आके ठनी।। हैं तो अपने ही सब फिर क्यूं पर्दा यहां, प्रश्नों की इक लड़ी उसके मन ने बुनी।।
याद आता हैं क्यूं उसको छूटा मक़ाम, देह अब भी वही, बंदिशें कुछ नई जब से बेटी से वो है बहू बन गई।।।

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13 AUG 2022 AT 20:45

If you say that someone is dumb, it actually depicts your own mental quotient of not bng able to comprehend to that level.there is nothing like general assessment scale, it can never be relative as variables are huge...its just you cant gauge up to that level

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2 AUG 2022 AT 19:06

Sometimes holding oneself is so hard...You get to feel the broken pieces getting pierced through your skin... slowly and gradually poisoning your soul

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23 JUN 2022 AT 23:39

सात फेरों से लिपटी कहानी मेरी
तुमसे जुड़ के थमी सी रवानी मेरी।
तुमसे मिलके था चाहा नयापन मिले
कश्मकश में पड़ी हैं जवानी मेरी।।
ये चौखट जो लांघू असमाजिक बनूगी
जो रही इसके भीतर तो जी ना सकूंगी।।
क्या पता भी हैं तुमको कैसे जीती हूं पल छीन?
साकित कर गए हो जिंदगानी मेरी।।

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