भीड़ से रूठकर तन्हाई को परछाई बनाई है इस दुनिया को कब किसकी तस्वीर समझ आयी है गाल गिले हुए तो दिल हलका हो गया कही अंधेरी रातों मे कोई झुठा ख्वाब जगाकर सो गया।
ऐ जिंदगी कहा ढूँढू तुझे। मिलकर भी क्यो नहीं मिलती तू मुझे। साथ होते हुए भी, तुझसे राबता क्यों नही होता। सबकी नकल उतारता है ये आईना इसमे तेरा चेहरा क्यों दिखाई नही देता।