सोचा था, भींगे हम तेरी बारिश में मगर-
तेरा अचानक-बिन कहे आना- और चले जाना-
कुछ नया नहीं था मेरे लिए-
सोचा था, पीपल के पत्ते से टपकती ओस की-
पारदर्शी और निश्छल बूंदे-
जो घने व्योम से टपकेगी और-
मुझे अपने आप में सरोबार करेगी-
पर ये मुझसे नजरें चुराना-
औऱ अचानक जमीं पे, अपने प्यार से ठंढक देना-
एक अलग का एहसास था-
पर, ये तू ऐसे नज़रें क्यूँ चुराती है-
जैसे, तुम किसी अनजान के घर दस्तक दिये हो-
ऐसा लगता है, जैसे-
किसी और के लिए, मुझसे छुपके नतमस्तक हुए हो-
तेरे पारदर्शी और निश्छल भाव से ही तो मुझसे प्यार था-
जो तुझसे, उन काली व्योम से बरसते-
झमाझम बारिश से अलग बनाता था-
पर अचानक, तुम इस तरह से खुद को-
अपने आप को- उस तरफ क्यूँ ले जा रहे हो-
जहाँ, तेरे लायक कुछ भी नहीं-
जहाँ, तुम खुद से- ख़ुद के लिए बग़ावत करोगी-
फ़िर भी-
बता रहा हूँ, अपना समझ के-
मत जा उस घनघोर बादलों के बीच में-
जहाँ से तुम इस खूबसूरत दुनिया से अलग हो जाओगी-
तेरे अपने पीछे छूटने लगेंगे और,फिर-
धीरे-धीरे- सब कुछ बदलने लगेगा-समय है अभी-
फिर से बरस जा-
तपती धरती को भीगा जा!!
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