आजाद हुआ सा हूँ पंछी कोई,
फलक देख भागा अभी,
उड़ता चला चित सांझ में,
गिरता कभी, संभलता कभी.....-
जो तुम देखते हो,
वही सब देख रहे है,
फर्क है बस समझने में,
और सब कुछ बंद आँखों से कर जाने में,
उस पर विश्वास जताने में,
और देखकर किसी ओर निकल जाने में,
बंद आँखों से जब तुम किसी भीड़ में उतर जाओगे,
झरोखों से किसी खीचतीं दिशा में बेजान खुदको पाओगे,
रोशन अंधेरा मुस्कुराकर किसी सांझ जब खींचेगा,
गुजरता हुआ हर लम्हा बेचैनी से आँख भींचेगा,
फिर भुलाकर जो कतारों की रंजिशें तुम,
भुजाओं की डगर बनाओगे,
लड़कर भी जहां की दुश्वारियों से,
कोई प्रीत नयी सी चाहोगे,
वो डिग जायेंगे शूल सारे,
तुम कोशिश कोई अपार करो,
मंजिल झुकेगी कदमों तले,
तुम उठकर नया आगाज़ करो !
तुम उठकर नया आगाज़ करो !
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वो इश्क़ अनजान पढ़ती रही कागजों पर,
हम फ़ासले मुसलसल मिटाते गए,
वो झुठलाती रही उल्फ़त की बारिशों में होके तरबतर,
हम बेचैनियाँ नब्ज़ की छुपाते गए!
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सियासत के महखानों से,
कुछ ज़ाम सुकून के दोगे क्या?
बरकतों पर तुम्हारी,
सिमटकर बहती इन साँसों को,
कुछ जमीं शमशान लूट कर दोगे क्या?
रह जायेंगे जब जज़्बात सारे कागज़ी पैमानों पर,
तब बेजान पड़ी इन आँखों को,
अंजाम जूनून के दोगे क्या?
सियासत के महखानों से,
कुछ ज़ाम सुकून के दोगे क्या..
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इन लहरों की फरमाइशों में,
बादल जब-जब मुल्तवी हुए,
कुछ टूटकर भी रहे पत्ते शाख के,
कुछ जुड़कर भी तर जमीं हुए !
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खफ़ा नजरों से रंजिशें अता करती है वो,
सुना है कुछ ख़ास मकसदों से वफ़ा करती है वो,
यूँ तो कर लेते हम भी आजमाइशें अल्फाज़ों की, महफिल-ए-इबादत में,
सुना है शायरों को महफिलों से दफा करती है वो !-
बेजुबानों के दौर में ये रिवायतें कैसी है?
खुशफ़ेमियों के नकाबों की ये इबादतें कैसी है?
नशा-ए-हुक्मरानों की खुदगर्ज़ी को खुदा जान बैठे हो तुम,
माथे पर सिलवटों की अब ये शिकायतें कैसी है?-
ये जो अल्फाज और जज़्बात है...
बड़े ही ख़ास हुआ करते है,
बिखरते लम्हों में मरहम सा कोई,
सँवरते किस्सों में सारी क़ायनात हुआ करते है !-
रणभूमि में जब मृत्यु का, वीरता से आहवान हो,
प्रचण्ड हो कठिनाइयाँ, प्रचण्ड ही अभिमान हो,
संघर्ष घड़ी ऋजुरेख सी, चाहे काल सर पे सवार हो,
प्रचण्ड हो कठिनाइयाँ, प्रचण्ड ही अभिमान हो!
परवाह न हो मृत्यु की, चाहे वज्र सा प्रहार हो,
हर शत्रु की ललकार पर, सिर्फ शौर्यता का संचार हो,
रणबांकुरों की भूमि बनी, इसे गर्व है, अभिमान है,
हर काल की गाथा में यहाँ, संघर्ष है, बलिदान है,
सशस्त्र हो, निशस्त्र हो, संकल्प कभी त्यजता नहीं,
प्रकोप से कोपित हुआ, इन्हें काल भी चुनता नहीं,
मृत पड़े जहाँ शत्रु की भी, शौर्यता का सम्मान हो,
प्रचण्ड हो कठिनाइयाँ, प्रचण्ड ही अभिमान हो!
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मुख़्तसर दीदार उसका, सुकूं न देता मुझे,
वक़्त-दर-वक़्त थोड़ा और निखरती है वो!
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