जाने कैसी बेचैनी है जो आज नींद उड़ा रही
जाने कैसे बेचैनी है जो सारी रात जगा रही
फैला है ज़हर हवाओं में जल रहा पूरा देश है
क्या यही राम की सीख है क्या अल्लाह का यही संदेश है
किसकी नज़र लगी वतन को की ये नौबत आई है
तोड़ रहे सब देश को अपने ये जाने कैसी लड़ाई है
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बहुत अये हमारी महफ़िल में मगर इस दिल को कोई रास न आया
जिससे दिल लगा सके इतना कोई खास न आया
एक तुम हो जो इन नज़रों को भा गई हो
एक तुम हो जो दिल मे समा गई हो
ऐसा किसी और के लिए कभी कोई एहसास न आया
बहुत अये हमारी महफ़िल मे मगर इस दिल को कोई रास न आया-
एक चाहत है फिर कही मुलाकात हो
एक चाहत है फिर बैठ कर कुछ बात हो
मालूम है अब मुम्किन नही लेकिन फिर भी
एक चाहत है फिर वैसे ही हालात हो-
ये खुराफात आज हमारे भी साथ हो गई
जिसकी कभी बात होती थी आज वो बात हो गई
बैठे थे यारों के संग एक अरसे बाद शाम को
बाते होती रही और पता न चला कब रात हो गई-
हुम् तुमसे मिले नही कभी न तुम्हे ठीक से जानते है
न घूमे है कभी तुम्हारी गलियों में न उन्हें ठीक से पहचानते है
कोई रिश्ता नही है तुमसे न तुमसे कोई नाता है
जाने कैसे ज़ज़्बात है की फिर भी तुम्हे अपना मानते है-
-------रिश्ता-ए-मोहब्बत-------
वो रिश्ता जिसमे तुम्हे अपना कह सके
वो जिसमे मैं तेरा बन जाऊं
वो जिसमे रोशन कर दो तुम मुझे चांदनी बन कर
जब कभी मैं रात का अन्धेरा बन जाऊं
वो रिश्ता जिसमे तुम बन जाओ मेरी हसीन शामें
वो जिसमे में मैं तेरी चाहतों का सवेरा बन जाऊ
वो रिश्ता जिसमे तुम्हारे दिल मे हो मेरा आशियाना
वो जिसमे मैं तेरी खुशियों का बसेरा बन जाऊं
वो रिश्ता जिसमे तुम्हे अपना कह सके
वो जिसमे मैं तेरा बन जाऊं-
एक उम्मीद सी है उसे पाने की
एक चाहत भी है उसमे खो जाने की
माना हमारी किस्मत वो न सही लेकिन
एक आरज़ू तो है उसकी ज़ुल्फो तले सो जाने की-
एक शक्श था जो बिछड़ गया इस वक़्त की हेरा फेरी में
एक दौर था जो गुज़र ना सका थोड़ी और देरी में
कुछ कहना था किसी से जो मैं कभी कह न सका
एक लम्हा था उस दौर में जो कुछ पल और रह न सका
जाने कैसा घर किआ है उसने मेरे जज़बातों में
आज भी उसका ज़िक्र रहता है मेरी सारी बातो में
नामुमकिन है ऐसा होना ये बात मैं भी जानता हूं
लौट आए वो दौर यही हर दुआ में फिर भी मांगता हूं
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कुछ यादें जुड़ी है इस बरसात के पानी से
कुछ किस्से जुड़े है इस मौसम की मेहरबानी से
जी चाहता है उन कहिनिओं में फिर खो जाऊं
फिर से रात भर जागूँ और दिन में फिर सो जाऊं
हर एक खुराफात में यारों का संग रहता था
जिंदिगी जीने का अपना अलग ही ढंग रहता था
वो लम्हे भुलाए न जाते है आसानी से
कुछ किस्से जुड़े है इस मौसम की मेहरबानी से-
साल बदले हाल बदले तारीख वही पुरानी है
इसके पीछे जाने कितने किस्से और कहानी है
किसी अपने के साथ की कुछ यादें हैं इन तारीखों में
बिछड़ गया वो हमसे और अब बाकी यही निशानी है-