उसके बिन बोले
हर खुशी देने का फैसला ,
दूर कर देना चाहती थी
जिसका हर एक इब्तिला ,
उसे देखे बिना ही
मोहब्बत करने का सिला ,
अब वृद्धाश्रम में मिल रहा है ।-
ये ज़िन्दगी ! तू सुन
बंद कर नाचना , किसी और की धुन
अपने मर्जी से तू , कुछ तो चुन !
क्यों कर रहा अपने ही सपनों का खून ?-
निष्कर्ष तक पहुंचने की ?
कोशिश तो करो
सब पहलुओं को समझने की !
क्या ज़रूरत है बिना जाने
बिष उगलने की ?
बिना सोचे - दिमाग लगाए
त्वरित निर्णय करने की ?
बिना खबरों के स्रोत जान
खुद को अंधेरे में रखने की ?
व्हाट्सऐप में हर चीज़ नहीं होती
गैर जांच फॉरवर्ड करने की ।-
हजारों में किसी अपने को
ढूंढ लेना भी एक कला है ।
इस कला में , मैं हूं माहिर
क्यूंकि इंसान सच्चा हूं मैं ।
ढूंढ तो लेता हूं अपनों को लाखों में भी,
बस उन्हें पहचानने में थोड़ा कच्चा हूं मैं।
शायद यही नादानी देख मेरी सब कहते है ,
कि अभी भी बच्चा हूं मैं ।
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इतनी भी मोहब्बत नहीं करनी तुमसे,
तुम झेल नहीं पाओगे ।
गर सच्ची मोहब्बत हो गई हमसे,
तो मेरे दिल से खेल नहीं पाओगे ।-
पत्रकारिता - एक व्यापार
जिसको समझ बैठी थी मैं
लोकतंत्र का एक अविभाज्य अंग,
वही विभाजित कर रहे लोगों को
जैसे यही है सबसे ज़रूरी प्रसंग ।
शिक्षा की तरह ये भी
बन चुका एक लाभदायक व्यवसाय,
"पैसा फेक तमाशा देख"
नीति अपनाकर बढ़ा रहे है आय ।
"भाजपा - कांग्रेस के अभिकर्ता बन
करता रहता है एक दूसरे के विरूद्ध जाप,
अरे ! कभी तो पारदर्शिता अपनाकर
देश के महत्वपूर्ण खबरे तू छाप ।"
जर्नलिज्म में उच्चशिक्षा प्राप्त कर ,
ओडिशा को बेंगल बतलाते है ।
सिर्फ कुछ ही राज्य के खबर दिखाकर,
नेशनल मीडिया कहलाते है ।
आम जनता के परेशानियों को
प्रकाशित करने को यह है नाकाम,
सोचते ये बलात्कार के खबरों को आम,
सब है "पैसे के खेल" का अंजाम।-
बाती कभी राख़ होके दिए से अलग ही होनी है,
और यही हमारे असीम प्यार की अधूरी कहानी है।-
जैसी हवा वैसा इसका बर्ताव ,
उमड़ता रहता चंचलता का सैलाब ,
बहने दे अपने मन के भाव ,
ताकि घेर न ले तनाव !!!-
ऐसा क्या कर दिया हमने जो ऐसी सज़ा दोगे ?
हमसे अपना दिल लेके क्या किसी और को कर्ज़ा दोगे ?-
नकाब
कोई पहनता है समझ के इसे लिबास ,
कोई पहनता है सोच के मजहब का असास ,
कुछ पहनते है ताकि न हो चेहरे को कड़ी धूप का एहसास ,
फरेबी इसे पहन लेते है दिखाने झूठा इख्लास,
पर आज सब पहन रहे है क्यों कि ,
ज़िंदा रहने की बस यही है आस ।-