तुम्हें देखे तो एक अरसा गुज़र गया है।
तुम्हारी तस्वीरों ने मुझे संभाल रखा है।
तुम्हारी यादों ने मुझमें जान फूंक रखा है।
मेरी रूह से मेरा नाता उस वक्त ही छूट गया था।
जब तुमने मुझसे आख़िरी बार अलविदा कहा था।।
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लिख रहा हूँ उनके लिए,
जो कभी थे मेरे लिए।।
तुम अपना हाल जुबाँ से बताओ,
ये जरूरी तो नहीं।
तुम सिर्फ़ अपनी व्हाट्सएप डीपी बदलती रहो,
मैं तुम्हारा हाल समझता रहूँगा।।-
खुदको इतना भी बदल मत देना,
की तुम्हारा प्रमाण तुम्हारे वजूद को देना पड़ जाए।-
क्या, तक़दीर में यहीं तक लिखा था हमारा सफ़र,
जो दीदार करते न थकी तुम्हें, मेरी नज़र।।
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हे, प्रियसी तुम मेरे रूह की रहबर हो
तुम मेरे इश्क़ की मज़हब हो,
तुम्हारा मुझपे यूँ फ़िदा हो जाना,
गैर सा लगने लगा ये है,पूरा ज़माना।
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बा-दस्तूर पड़ गया है वो वदन,
मानो सूखे ग़ुलाब से भर गया है गुलशन।
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मेरे कमरे का हर एक हिस्सा,
बयां कर रहा,
हमारे इश्क़ का हर एक क़िस्सा।-
एक अंजान से शहर में,
एक अज़नबी से मुलाकात हो गई।
वो मुझे तकते रही,
वो इश्क़ करते गई।
मैं अंजान सा था उसके इश्क़ से,
जब तक उसे महसूस किया,
तब तक वो हो चुकी थी दूर मुझसे।
अब उससे इश्क़ बेपनाह है,
पर वो अब मेरे पास नहीं है।
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किन-किन बातों को भूल जाऊँ?
जिनमें तुम्हारा जिक्र न हुआ हो?
या
जिनमें तुम्हारा फिक्र न हुआ हो?-