प्रियांशी उपाध्याय   (रूप)
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Joined 25 April 2020


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Joined 25 April 2020

हर मनुष्य,
हार्मोनल उठा-पटक के बीच,
अपने मन पर बेड़ियाँ कस,
जिस स्थिरता को
बनाए रखने का अथक प्रयास
करता है ;

वही स्थिरता
उसके " चरित्र " का निर्माण
करती है !!

-



इतिहास से,
भावनाएँ पृथक नहीं की जा सकतीं
ठीक वैसे,
जैसे भावनाओं से
मनुष्य नहीं पृथक किया जा सकता ।

मनुष्यों का इतिहास
बिना भावनाओं के,
मात्र लिखित दस्तावेज है,
और कुछ नहीं..!!

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आज तक
हमारी बनाई संस्थाएँ,
इतना विकसित नहीं हो पाईं कि,
सारे संयोग उनकी क्षमता की
सीमा में आ सके...।

सारे संयोगों के
प्रबंधन की क्षमता रखने वाला
आज भी...
एकमात्र सर्वशक्तिमान
"ईश्वर" ही है...!!

-



एक बार..
बन जाए मेरे भी शहर
की सड़कें ;

फिर हम भी,
बारिशों से इश्क
लिखेंगे..!!

-



वो,
जो कविताओं में है ;
पवित्र है।

वही,
जब व्यवहारिकता में उतरता है ;
दूषित हो जाता है !!

-



वो,
कि जिसको कैद करने की
तमन्ना दिल में पाल
बैठे हो ;

वो,
तभी तक खूबसूरत है
जब तक आज़ाद
दिखता है !!

-



सड़कें..
हमेशा आवारा रहीं
इसीलिए दूर तक गयीं...!

गलियों ने संकोच किया
और सिमट कर रह गयीं..!

दूर तक जाना है
तो संकोच त्यागना होगा !!

-



अवसाद...
एक अवस्था नहीं,
बल्कि एक त्रासदी है !

एक
ऐसी त्रासदी...
जिसमें, मन ही मन को
मृत्यु को सौंप देना चाहता है,
जब मन के मन का
कुछ भी नहीं होता ।

धीरे-धीरे मन..
चाहना बंद कर देता है ,
उसके मन का कुछ भी होने की !!

-



कई बार शांति स्थापित करने के लिए
भय उत्पन्न करना आवश्यक होता है ।

भय व्याप्त करने के लिए
कई बार युद्ध आवश्यक हो जाते हैं ।

और जिन्हें युद्ध से भय लगता है,
उन्हें शांति की लालसा त्याग देनी चाहिए !!

-



कुछ आवाज़ें...
भीषण क्रंदन करती हैं,
लेकिन उनका क्रंदन किसी को
सुनाई नही देता !

कुछ आवाज़ें..
इसलिए भी मूक हो जाती हैं
क्योंकि उनको अनसुना कर दिया जाता है ।

कुछ आवाजों का दमन करने के लिए
उन पर अत्याचार आवश्यक नहीं..

विरोध में उठती आवाजों के
दमन करने का सरलतम मार्ग है,
उन्हें अनसुना कर दिया जाना !!

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