प्रियांशी उपाध्याय   (रूप)
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Joined 25 April 2020


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मुरझाने का क्रम,
धीरे-धीरे ही सही..
पर एक ही बार घटित होगा।

लेकिन उस..
एक बार मुरझाने के क्रम में,
ना जाने कितनी बार घटित होती होगी
मन में वेदनाओं के उमड़ने की प्रकिया।

ऐसे ही तो मुरझाते जा रहे हैं...
हम,
तुम,
और हमारे मध्य की सारी
" संवेदनाएँ " !!

-



कितना अच्छा होता है,
बता पाना...

'किसी के रहने तक' ;

कि उसके ना रहने पर
कुछ भी अच्छा नहीं लगता !!

-



जीवन में,
एक उम्र के बाद..

ये सीखना
बहुत आवश्यक हो जाता है कि..

कब, कितना, कहाँ, और कैसे
छोड़ते जाना है..!!

-



कुछ लोग सुनते हैं,
असीमित और अपार सुनते हैं !

वे सुनते हैं..
व्याकुलता, उलझने, अधीरता,
शोक, विषाद, वियोग और अकेलापन..

उनका..
इतने संयम और सहजता से किसी को सुनना,
मुझे अक्सर उनके सुनने पर अनुरक्त
होने को विवश कर देता है !!

-



सब कहते हैं,
तुम आओगे तो बसंत आएगा..

मैं वर्षों से बसंत की प्रतीक्षा में हूँ !

इससे पहले कि मेरी प्रतीक्षा समाप्त हो
बसंत ले आओ !!

-



किसी को पूरी तरह
जान लेने के बाद ही
समझ आता है कि

आप किसी को
पूरा नहीं जान सकते !!

-



ये दुनिया आपसे,
आपके साधू होने का प्रमाण
तभी माँगती है,

जब आप अपने साधू होने का
दावा करते हैं !

अन्यथा ये दुनिया
हर किसी को दुराचारी समझती है !!

-



" हर आदमी में होते हैं दो चार आदमी ! "
अब उस आदमी के अंदर का कौन सा आदमी
आपसे मिलता है ;

यह इस बात पर निर्भर करता है
कि आपके अंदर का कौन सा आदमी
उस आदमी से मिलता है !!

-


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