प्रियांशी उपाध्याय   (रूप)
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Joined 25 April 2020


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निसंदेह !
तुम्हारे जाने से
दुनिया नहीं रुक जाएगी ।

लेकिन
तुमसे संबंधित कुछ व्यक्ति
एक अनिश्चित अवधि के लिए
अवश्य रुक जाएंगे ।

और उनका
एक अनिश्चित अवधि के लिए रुकना
उन्हें दुनिया से पीछे कर देगा !!

-



हमारी पीढ़ी,
एक ऐसी सभ्यता की निर्माता है,

जहाँ हम एक दूसरे के साथ
कदम से कदम मिलाकर चलने के बजाये,

एक दूसरे की टाँग में टाँग अड़ाकर
उसे गिराने में अधिक विश्वास रखते हैं !!

-



अधिकारों की लड़ाई में,
हमने कर्तव्यों को इतना पीछे छोड़ दिया है
कि दोनों के मध्य सामंजस्य बैठा पाना
अब संभव नहीं जान पड़ता है !!

-



कई बार कुछ चीज़ें,
हमें इतनी अच्छी लगती हैं
कि हमें उसकी खामियाँ नज़र ही
नहीं आतीं !

और नज़र आती भी हैं,
तो हम उन्हें नज़रअंदाज कर देते हैं !!

और इसी के बाद शुरू होता है
बर्बादी का वो मंज़र जो फिर हमसे
झेला नहीं जाता !!

-



हमें,
इस बात की चिंता छोड़ देनी चाहिए
कि कोई बाहरी आक्रमण,
हमें विभाजित कर सकता है !

क्योंकि हम पहले से,
इतने अधिक बँटे हुए हैं
कि कोई बाहरी फूट
हमें और नहीं बाँट सकती !!

-



जिस तरह कला,
साहित्य, संगीत, नृत्य,
रीति-रिवाज, परंपराएँ और मूल्य
किसी भी समाज की सांस्कृतिक
धरोहर होती हैं ;

ठीक उसी तरह...

चहारदिवारी की
कालजयी कालिमा में
संघर्ष करते हुए व्यक्ति के लिए
उसका धरोहर होते हैं उसके आँसू !

जिन्हें वो संजोए रखता है
कार्य सिद्धि की विरासत के रूप में ।

-



कोई भी व्यक्ति,
अचानक कुटिल नहीं हो जाता !
कुटिलता धीरे-धीरे ही मनुष्य में
समाहित होती है।

पूर्णता कुटिल हो जाने के मध्य
कई सम्भावनाएँ होती हैं,
वापस सरल हो जाने की ।

लेकिन हर सम्भावना की अवधि
इतनी छोटी होती है कि व्यक्ति जबतक
अपने कदम वापस खींचने की सोचता है
परिस्थितियाँ उसे आगे धकेल देती हैं।

और कुटिलता का क्रम एक बार फिर
निरंतरता की और अग्रसर हो जाता है।

-



हृदय के भीतर उठ रही आवाज़ें,
मुझे अक्सर दुनिया की रीतियों के
विपरीत चलने के लिए प्रेरित करतीं हैं ।

मैं जब भी विपरीत दिशा में,
कदम बढ़ाने का प्रयास करती हूँ,
तो दुनिया की आवाज़ें मुझे पीछे खींचती हैं ।

हृदय के भीतर की आवाज़ों और
दुनिया की आवाजों के द्वन्द में,
मैं अक्सर बेचैनियों का शिकार हो जाती हूँ।

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अच्छे इंसान को लोग
अक्सर भोला कहते हैं।

भोलापन अब मूर्खता का
पर्याय भी माना जाता है।

अच्छे लोग अब भोले नहीं
मूर्ख कहे जाते हैं।

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