थोड़ी शिकायत है वक़्त से
बहुत ज्यादा परेशान हैं हम
जहान में ढूंढते फिरते हैं खुशियाँ
खुद से कितने अंजान हैं हम
प्लॉनिंग सालों की करते हैं
और जानते भी नहीं,
कितने दिन के मेहमान हैं हम
छोड़ आये वो घर वो चौखट
वो माँ की तरसती निगाहों को बेबस
अपनी खुशी,अपनी दुनियाँ ,
अपने सपनो की खातिर
कितने खुदगर्ज और बेईमान हैं हम
इतनी दरिंदगी इतनी बेईमानी
एक दूजे को रौद देने की दौड़
कभी फुर्सत मिले तो पूछना खुद से
क्या सच में इंसान हैं हम-
तुम्हारे नाम का सिंदूर किसी ने
हक से लगाया होगा ना
अपनी हथेली की मेंहदी में
तुम्हारा नाम छुपाया होगा ना
लिया होगा तुमने सात फेरे किसी के साथ
पंडित ने सात वजन भी दिलवाया होगा ना
जब बैठे होगे मंडप में शादी के करने सारी रश्में
एक बार को ही मेरा खयाल दिल में आया होगा ना
दोस्त की बीबी का नाम लिया होगा जब भी
मेरा नाम मन में एक बार तो दोहराया होगा ना
जिसे माना था कभी अपना मैने घर के साथ
दिल का हर कोना तुमने खाली कराया होगा ना
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जब दरबदर भटक कर
वापस लौटती हूं घर
तो दरवाजे पर बैठी
तुम्हारी यादें साथ अंदर दस्तक देती हैं
अब उन्हें नही दुत्कारती मैं
अब उनसे पीछा भी नहीं छुड़ाती
अपना लेती हूं ,
जैसे अपना ही कोई हिस्सा हो
एक लम्हे से मेरे इंतजार में
मुझसे अलग मेरी तरह ही तन्हा हो
सहला देती हूं माथा
और पूछ लेती कब तक साथ हो
अब डर नहीं साथ खोने का
अब सब मंजूर है मुझे सब!-
तुम्हे लगता था
तुम्हारे बगैर
जिंदगी रुक
जाएगी उसकी
तो ये तुम्हारा
भरम था बस
तुम्हे पीछे छोड़
बहुत दूर निकल गया है
वो एक सख्स-
प्यार के कितने रूप हो सकते हैं
शुरुआत में बचपन जैसा
सब अच्छा लगता है
जिसे दिखती नहीं
कोई भी कमी आपमें
फिर धीरे धीरे ढलने लगती है
उम्र और बढ़ती जिम्मेदारियों के साथ
कम होने लगता है
बातों का सिलसिला
और साथ में कम होता है
एकदूसरे को जानने समझने की चाहत
और टूटने लगती है
बातों की वो कड़ी
जिससे रिश्ता चल रहा था
और अंत में हो जाती है
मौत रिश्ते की
एकदम वैसे जैसे
होती है मौत किसी बूढ़े की
थक कर हार कर
पर आपको ये मौत मंजूर नहीं है
बिलकुल नहीं
हम में से जाने कितने लोग जीते हैं ये मौत
जिंदगी में एक बार
या शायद जिंदगी भर-
तजुर्बे से कहती हूं
आसान रास्ता चुनने वालों की
मुहब्बत बड़ी खोखली होती है-