रोशनी तो बाँट देती है मुझे दो हिस्सों में ,
बस अंधेरा ही है जो मुझे समेट कर रखता है ।।
- Priya-
इश्क नहीं जिदंगी की ज़ुल्फ़ों से फिसले हैं हम
बहुत उलझनों से उलझते हुए सुलझे हैं हम।।-
ਇੱਕ ਔਰਤ ਕੀ ਕੁਝ ਨੀ ਕਰ ਸਕਦੀ
ਕਾਗਜ਼ ਦੀ ਕਿਸ਼ਤੀ ਨੀ ਬਣਾ ਸਕਦੀ
ਜਾਂ ਆਸਮਾਨ ਚ ਜਹਾਜ਼ ਨੀ ਉਡਾ ਸਕਦੀ
9 ਮਹੀਨੇ ਕੁੱਖ ਚ ਬੱਚਾ ਨੀ ਰੱਖ ਸਕਦੀ
ਜਾਂ ਦਰਦ ਚ ਬਿਨਾਂ ਸੁੱਤੇ ਰਹਿ ਨੀ ਸਕਦੀ
ਆਪਣੀ ਭੁੱਖ ਨਹੀਂ ਮਾਰ ਸਕਦੀ
ਜਾਂ ਦੁਨੀਆਂ ਨਾਲ ਕਦਮ ਨੀ ਮਿਲਾ ਸਕਦੀ
ਬਿਨਾਂ ਗਲਤੀ ਮਾਫ਼ੀ ਨੀ ਮੰਗ ਸਕਦੀ
ਜਾਂ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਝਿੜਕਾਂ ਨੀ ਸਹਿ ਸਕਦੀ
ਆਪਣੇ ਹੰਝੂ ਨੀ ਛੁਪਾ ਸਕਦੀ
ਜਾਂ ਪਰਿਵਾਰ ਖਾਤਰ ਸੁਪਨੇ ਨੀ ਮਾਰ ਸਕਦੀ
ਹਾਂ ਬਸ ... ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੀ
ਇੱਕ 'ਸਮਝੋਤਾ'
ਜੋ ਰਿਸ਼ਤੇ ਜਾਨ ਤੋਂ ਪਿਆਰੇ ਨੇ
ਉਹਨਾਂ ਰਿਸ਼ਤਿਆਂ ਤੇ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦਾ ਹੱਕ
ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦੇ ਨਾਂ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੀ।।
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आज चाँद की खूबसूरती भी कमाल है
लगता है महबूब के दीदार से वो भी बेहाल है-
वाह रे इन्सान!
कैसा ये तूने काम किया..
खुद को तो क्या , तूने तो इस बार ख़ुदा को भी शर्मसार किया...
क्या मिला तुझे उस जीव को मार के?
अपने लाभ के लिए क्यूं तूने उस बेजुबान का सहारा लिया?
वाह रे इन्सान!
कैसा ये तूने काम किया..
भोजन के अभाव से तो वो हथिनी शायद बच ही जाती,
पर क्यूं तूने उसके बच्चे की भूख का फायदा इस बार उठा लिया?
वाह रे इन्सान!
कैसा ये तूने काम किया..
हो न जाए गर्भ में पल रहे बच्चे को कुछ,
उसको बचाने की खातिर खुद ही की जान से समझोता कर लिया..
वाह रे इन्सान!
कैसा ये तूने काम किया..
जीवों को तो तुम करते ही तुम हमेशा से ही खत्म,
एक अजन्मे जीव को गर्भ में ही खत्म कर ,सब हदों को तूने पार किया..
वाह रे इन्सान!
कैसा ये तूने काम किया..
फिर भी देख उस हथिनी का अहसान तुझ पे,
हो न जाए उसके जैसा हाल तेरा भी
तुझे बचाकर एक जानवर ने इंसानियत का सबूत दे दिया..
वाह रे इन्सान!
कैसा ये तूने काम किया..
खुद को तो क्या , तूने तो इस बार ख़ुदा को भी शर्मसार किया...
-Priya-
मजदूर के सफेद बालों में से निकली
पसीने की एक एक बूंद जब,
उसके माथे पे अनगिनत
शिकन को छू कर निकलती है,
सूरज से जलती आंखों पर
बस ठंडे पानी का काम करती है।
चेहरे पे झुर्रियों की भूल भुलैया को
पार कर सूखे होंठों की प्यास को
बड़े कमाल से बुझा जाती है।
फिर कंधों पे आराम करने के बहाने
जिम्मेदारियों का अहसास
क्या खूब याद करवाती है।
जल चुके कोमल से बदन से झांकते
दिल में हजारों सपनों का
उसके हाथों ही कत्ल करवाती है।
फिर हाथों को छू कर
अंगुलियों की दरारों में से
उसकी बिखरी तस्वीर बना जाती है।
खुद तो बेहाल हो, घुटनों पे बैठ कर
थके मजदूर को थकना नहीं
और चलना है, पाठ पढ़ा जाती है।
कितने ही पडाव पार कर पांव पे जब आती है,
नासूर बने ज़ख्मों पे मरहम थोड़ी लगा जाती है।
और अपने साथ अंत में हर एक मजदूर की
बेबसी, लाचारी की गाथा मिट्टी में मिला,
हमेशा के लिए अमर बना जाती है।।
-Priya-
तेरी सारी यादें
तुझे लौटा रहे हैं।
ख़ुश न थी ये
मेरे पास बंधी बन कर
दौगुनी कर तुझे ही
सारी यादें लौटा रहे हैं।
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सवालों का बवाल मचने पर
एक बवंडर जन्म लेता है
जो जज्बातों को गिराने को
आंधी तूफान का रूप लेता है
गर फिर भी कुछ बच जाए
तो बारिश बन अपने साथ
अनगिनत अरमान, आवेग
ले जाकर सबूत मिटा देता है।।
-Priya
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अबकी बार जो आयो तो
तुम मेरे पास मत आना,
बस दूर से ही छुपकर
मुझ में खुद को देख जाना।।-