रोज रोज नसीहत देने वालों को वो श्रेष्ठता नहीं मिलती जितना कभी कभी देने वालों को मिलती है
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कलयुगी दैत्य
पहले भी युद्व था
आज भी है ,और
आगे भी रहेगा
चाहे वो त्रेतायुग का हो
चाहे वो द्वापर युग का हो
चाहे वो कलयुग का हो
दैत्य हर युग में आयेंगे
न्याय के , सच्चाई के लिए,
सबक सिखाना होगा
चौक्कने होकर ,हिम्मत से , डटकर ,
जाल बिठाना होगा
कलयुगी दैत्यों को मार गिराना होगा
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वसुधैव कुटुंबकम्
युद्ध का फैसला होता है हार जीत का
और बस एक बदले की आग का
पर अक्सर हार जीत के फैसले में
कितने अपने हो जाते है कुर्बान
क्यों प्यारी नहीं लगती है दूसरों की जान
क्यों मानवता होती है तार तार
और इंसानियत की होती है हार
क्यों द्वंद के हालात होते हैं पैदा
क्यों इंसान आज इंसान नहीं
क्यों उसके दिल में अमन और चैन नहीं
क्यों वसुधैव कुटुंबकम् नहीं
क्यों ये भावना खो गयी है कहीं
क्यों एक सच्चा इंसान सो गया है कहीं
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सच का साथ देने वालों को
अंगारों से गुजरना पड़ता है
जिसमें देखने वाले की सिसकियां
और रुदन सुनाई देती हैं
और अपने को घाव जला देता है
शायद ही इस दुनिया में कोई समझ पाता है
और झूठ सिर्फ दोनों हाथों से
हंस कर तालिया बजाता है-
गर पानी है छाया
सुकून ए भरी माया
उदर की भूख मिटाने
निर्दोष वायु के संचार को पाने
पेड़ जिन्दगी की शुरूआत
साथ देता है मरणोपरांत
पर पहले पेड़ लगाना पड़ता है
पर पहले पेड़ लगाना पड़ता हैं-
ये तो
दिल की है उपज
खुश रहने की
है समझ
बस ये तो आनंद है सहज
जो केवल सुखानुभूति की है तरज
जिसका आधार केवल मन
और जिसका प्रभाव केवल
खुशियों का धन
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साल के अंत में
तहे दिल से माफी गर
मन कर्म वचन से
हुआ हो किसी को ठेस
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हर साल
हर साल कुछ न कुछ अनुभव दे जाता है
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें दे जाता है
साल का ये अंत नहीं
तजुर्बों का खजाना है
आने वाले समय का गुरु बन
हर पल की अहमियत का पिटारा है-
सलाम हैं ऐसे रतन को
रतन टाटा जैसे रतन
नसीब में होते है बहुत कम
जिसने इंसानियत, मेहनत और प्रगति का
लहराया परचम
पुनर्जन्म का रहेगा इंतजार
प्रार्थना नही जाएगी बेकार
ऐसे रतन को दुबारा आना होगा
भारत को उन्नति के शिखर तक पहुंचाना होगा
भारत को उन्नति के शिखर तक पहुंचाना होगा-