तुम्हारे बहाने......
अपनी तस्वीर देख लिया करती थी
जब से तुम गए.......
खुद को देखे एक अरसा हो गया। — % &-
(मेरी कुछ चुनिंदा कविताएँ नीचे दिये गए लिंक पर पढ़े)
जब हम पहली बार मिले थे......
तुम्हारा मुझे पीछे से टोकना
और अचानक मेरा मुड़ना और
हमदोनों का संग में हँस पड़ना।
याद है तुम्हें?
तुम! मेरे लिए कोई गुलाब नहीं लाये थे
लाये थे कविता की एक किताब।
वो हमारी पहली मुलाकात थी।
आख़िरी का मैंने कभी इंतज़ार नहीं किया। — % &-
तुमने कभी की है चाँद से बातें!
मैं अक्सर करती हूँ ये सोच कि...
तुम भी कर रहे होगे।
(शायद हमारी गुफ़्तगू चाँद एक-दूजे से बता दे) — % &-
तुम्हें लिख-लिख मैं अमर करती हूँ....
कवियों के प्रेमी कभी नहीं मरते!
वो अमर हो जाते हैं।
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सुनो!
:
स्वतंत्र और स्वछंद में भेद है...
:
तुम
:
स्वतंत्र होना पर स्वछंद नहीं। — % &-
वो फूहड़ सावन- सा मुझ पर झड़ता है.....
मैं लता हूँ...उसमें जोंक-सी सिमट जाती हूँ। — % &-
निर्णय जो भी लेना.....( स्वतंत्र हो)
बाद में तुम्हें पछतावा नहीं होना चाहिए। — % &-
मैंने सुना था रिश्ता बना रहे.....
इसके लिए बातचीत ज़रूरी है।
जो अनुभव किया अलग रहा.....
दूरी से रिश्ते में मिठास बनी रही।
बातचीत कम की, मोहब्बत थोड़ी ज्यादा।
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कभी हम पुनः मिले.....
तो ये मुलाकात भी-
स्मरणीय होनी चाहिए।
क्योंकि......
विस्मृति तो सपनों की होती है।
किन्तु स्मृति- यादों की
सदा बनी रहती है।
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