बंद कमरे के किसी कोने में
डर सा लगता है, अकेले सोने में
जब जब खुद को अकेली पाई
रोते रोते बिस्तर पर, ना जाने नींद कब आई
धड़कने तेज और मन बेचैन सा हो जाता है
जब जब तेरा झूठा चेहरा, सामने नजर आता है
तेरी धुंधली यादों के साथ
जब मेरी हाथे कपकपाती है
सीने मे दर्द लिए
सासों की रफ्तार बढ़ जाती है
बंद कमरे के किसी कोने मे
अब डर सा लगता है अकेले सोने में
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