मैं सजुँगा तुम्हारे अधरों पर मुस्कान बनके,
तुम बनना मेरी गीत मैं बनूँगा संगीत तुम्हारा।।
तुम रफ़्ता-रफ़्ता लिखना मुझे अपने ख्वाबों में,
मैं बनूँगा अल्फाज़ तुम्हारा.... ।।
मैं थामूँगा हाथ , बनके रहूँगा सदा तुम्हारा,
तुम बनना मेरी प्रीत (लगाव),मैं बनूँगा विजय(जीत) तुम्हारा।।
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ला रही है मुझे तेरे पास।
एक वक़्त के बाद सब्र ही अच्छा लगने लगता है,
चंचलता न मन के कहीं कोने में शिथिल पड़ जाती है....-
ज़िंदगी के कुछ अलग हैं रंग,
कुछ अलग हैं कहानियाँ।
माना अभी वक़्त मेरी गिरफ़्त नहीं है,
एक दिन ज़रूर चलेंगी मेरी भी मनमानियाँ...-
Kisi ko maatr, dekhna ishq nhi hai,
dekh kar,ussi mein kho jana ishq hai...-
कभी -कभी होता है न जिस पर हमारा हक़ है ही नहीं,
हम उस पर भी अपना अधिकार जताने लगते हैं...-
कभी कभी लिख देती हूँ ,
कभी रह जाते हैं कुछ अल्फाज़ ।
बयाँ हो जाते हैं हर ज़ज़्बात,
जब जुड़ जाते हैं दिल से दिल के तार।।-
कि तेरे पास रहकर तेरी ही बातें करनी है।
तुझसे इक पल भी दूर रहूँ कैसे,
अब तुझमे ही फ़ना होके ,
तेरी ही इबा़दत करनी है....-
अगर किस्मत में संघर्ष लिखा है तो जिन्दगी में सुकून कैसे मिल सकता है...
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सुकूँ तो जैसे छिन ही गया है जिंदगी से
मसरूफ़ हैं तो सिर्फ़ उलझनें...-
कदम लड़खड़ाएंगे, पर तुम झुकना नहीं।
सफ़र में मुश्किलें तो आएंगी,पर तुम रुकना नहीं।।
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