PRIYA GUPTA   (प्रिया साहू)
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PRINCESS 👸
AU student😎
Joined 25 May 2019


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Joined 25 May 2019
29 JAN 2022 AT 9:37

लड़की होना जैसे पाप सा हो गया है।
बाहर निकालना एक अभिशाप सा हो गया है।
क्या तुमको अपनी हवस मिटाने थी?
तो कोठे भी तो बनाए गए है न तुम्हारे लिए?
फिर क्यों बर्बाद करते हो तुम उन्हें?
कली को फूल बनने से पहले ही क्यों तोड़ देते हो?
वो अपनी खुशबू बिखेरना चाहती है।
और तुम उन्हें कालिख पोट कर बदनाम करते हो?
अपनी हवस मिटा कर उसे ग्गुमनाम करते हो?
आखिर इंसानियत कहा गई तुम्हारी?
तुमको भी तो उस मां ने ही जन्मा दिया था?
वो लड़की भी भविष्य में किसी की मां होती,
क्या ख़त्म हो गई है तुम में इंसानियत?
या भूल गए हो की तुम भी एक इंसान हो?
काश एक बार सोचते की उन मां बाप पर क्या बीती होगी...
जिसकी बेटी शाम को घर नही आई।
मां बाप राह देखते रह गए।
फिर खबर मौत से भी ज्यादा दर्दनाक थी।
क्या वो सुन पाए होंगे वो दुख?
या जिंदा लाश बन गए होंगे?
अपनी लाडली बिटिया को ऐसे देख पाएंगे?
ढेरो सवाल हैं मेरे मन में,
पुछू तो शायद जवाब न मिल पाए,
और हां सवाल का जवाब चाहिए की "क्या ऐसी ही बेटियां हर बार शिकार होंगी?"

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24 JAN 2022 AT 20:48

मैं गाव की ग्वार, तुम शहर के साहित्यकार प्रिये!

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24 JAN 2022 AT 20:27

तुम फिर से मिलने की बात करते हो,
और मिलने के बाद नखरे हजार करते हो।

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2 JAN 2022 AT 19:15

तुमसे प्यार करू या नफरत?
इज़हार करू या फितरत?
दुनिया की सुनू या तुम्हारी?
या भूल जाऊ दुनियादारी?
बताओ न -
आखिर क्या करू मैं?
भूल जाऊ?
या बायां करू मैं?

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14 DEC 2021 AT 8:31

Meet you sometime at the ghat of Sangam.
All the grievance should be cleared in one dip.

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29 NOV 2021 AT 21:35

पल दो पल की खुशी,
फिर अपना वही ठीकाना यारों।
पल दो पल की गुफ्तगू,
फिर से वही लेक्चर पुराना यारों।
पल भर मां के हाथ के पराठे,
फिर वही रोटी चबाना यारों।
पल दो पल घर में रहना,
फिर एक रूम में ठीकाना यारों।

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5 SEP 2021 AT 14:53

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4 SEP 2021 AT 3:17

छोटी सी उम्र में बड़ी सी चाहत लिए,
रिश्ते नाते से बहुत दूर,
एक अपनी अलग दुनिया बनाए,
और ढेर सारे सपनो भरी रात,
बस इतने में ही अब खुश रहना सीख रही हूं,
मां अब मैं बड़ी हो रही हूं।

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4 SEP 2021 AT 3:06

तुम रात दिन एक ही समझना,
जब तक वो दिन न आ जाए।

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1 AUG 2021 AT 9:18

वो टिफिन एक और दोस्त चार,
रोटी एक खाने को चार,
ना जाने किस किस की भूख मिटती थी?
यूं बस दो कौर खाने से अपनी दोस्ती बनती थी।
अब तो सब बिछड़ गए है,
सब अपनी मंजिल तरासने में लग गए हैं।
तुम सब की तो अब भी बहुत याद आती है,
वो क्लास में बिना इंटरवल के लंच करना,
सर की नज़र पड़ते ही मुंह को बंद करना।
हर टीचरो के अलग अलग नाम रखना,
और उस नाम से उनकी क्लास में हूडिंग करना।
कहा चले गए वो लम्हे??
कितने प्यारे कितने नन्हे।

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