ज़िन्दगी के अब उस मोड़ पर खड़े हैं ना हम कि अब फर्क नहीं पड़ता किसी केे आने से या जाने से , उसके रुठने से या उसके मनाने से... अब लोगों की बातों को दिल से लगाना छोड़ दिया हैं हमने.... अब अकेले खुश हैं हम अब ना मतलब हैं हमे ज़माने से....
सच कहा हैं किसी ने चार दिन की ज़िन्दगी ............. चार दिन का मेला हैं....... दुनिया में आता भी अकेला हैं.... और जाता भी अकेला हैं.... जो भी ज़िन्दगी में कमाया हैं.. मरने केे बाद यही रह जाता हैं... इसलिए हंसते हंसते ज़िन्दगी बीताना चाहिए.. .ज़िन्दगी का क्या भरोसा .... कि कल क्या हो...... it's reality of life