मैं बस उस हिसाब से रही,
जितना आपकी किताब में सही..-
गहरी हो बात ग़र तो समझने में वक़्त लगता है
😊😊
मोहब्बत को अपनी_मेरे नाम ही रखा..
जितना भी मुझे रखा_तो गुमनाम ही रखा...
कहता तो है_के यूँ बिन मेरे अधूरा है वो...
मेरा होना _ तो ज़माने में बदनाम ही रखा...
परदेदारी में झूठ_तहज़ीब याफ्ता रहे...
मैंने बदतमीज़ सच_तो सरेआम ही रखा...
मुसलसल हादसों में_घायल यूँ होता मैं रहा...
दवा रही दूर मेरे_तो हाथों में मैंने जाम ही रखा...-
यूँ तो खूब झगड़ते हैं, ख़फ़ा होते हैं..
दर्द कोई भी दे, दोस्त ही दवा होते हैं...-
इक मामूली सा ख़्याल हूँ,
कभी आऊँ, तो मुस्कुरा देना..
इक अनसुलझा सवाल हूँ,
ना सुलझा.... तो भुला देना..-
रखना तुम सबर यारा, मुकम्मल सारे ख़्वाब होंगे...
ज़िन्दगी के जैसे सवाल होंगे, वैसे तुम्हारे जवाब होंगे..-
बुरे वक़्त में भी जो तुमसे जुदा ना हो...
ग़ौर से देखना उसे, कहीं वो ख़ुदा ना हो..
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कितनी अहमियत है मेरी,
वक़्त बेवक़्त बताया करो..
जो ग़र मोहब्बत है मुझसे,
हर वक़्त जताया करो...-
वक़्त की नहीं, ये दिल की बात थी
मैं दूर सबसे, हर पल तुम्हारे साथ थी...
मुझे तोड़कर बिखेरकर चले गए तुम
मैं गुड़िया थी इक, कमज़ोर काठ की...
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