पुरुष डरता है किसी भी तरह के
commitment से ...
पुरुष चाहता है आजादी
और वर्चस्व भी पूरा का पूरा....
इतना कमजोर है अंदर से
कि बस दिखाता है पौरुष बाहर से
स्त्री का साहस दिखावे का साहस नहीं
स्त्री करती है समर्पण पूरी तरह
इतना साहस पुरुष ला ही नहीं सकता
इसलिए पुरुष के साहस को जरूरत होती है
दिखावे की , युद्ध की , विजय घोषणा की
पर स्त्री साहसी होकर भी रहती है
बिचारी ताउम्र पुरुष के सामने.....
क्योंकी समर्पण को बना दिया कमजोरी
पुरुष ने समाज मे सबके सामने
और बचा लिया अपने को कमजोर कहलाने से .....
गर है साहस तुममें तो बतायो करके समर्पण
एक स्त्री की ही भांति बिना पौरुष बताए...
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